नमस्कार मित्रों,
पिछली पोस्ट से हमने 'अव्यय' प्रकरण को आरंभ किया था और प्रथम खंड 'क्रिया विशेषण' के बारे में पढ़ा था। आज हम इसके दूसरे खंड 'समुच्चयबोधक अव्यय' के बारे में पढ़ेंगे। प्रतियोगी परीक्षाओं में इस अध्याय के प्रश्न भी विद्यार्थियों के मन में कई प्रकार की भ्रांतियाँ उत्पन्न हैं, उन्हीं के निरकारणार्थ यहाँ विस्तार से इस अध्याय के बारे में बताया गया हैं फिर भी कोई शंका शेष रह गई हो तो कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखें। आपकी सहायतार्थ मेरे पिछले सभी पोस्ट के लिंक इस पोस्ट के अंत में दिए हैं, जिन्हें जरूर देख लें। और ब्लॉग को follow जरूर करें। तो आइये शुरू करते हैं आज का टॉपिक........
----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- ----- 2. समुच्चय बोधक अव्यय
परिभाषा :- जो अव्यय शब्द दो वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर जोड़ने में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
भेद :- इन्हें दो भागों में वर्गीकृत किया गया है -
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय तथा
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय :- दो समान स्थितियों वाले वाक्यों या वाक्यांशों को जोड़ने में प्रयुक्त होने वाले अव्यय शब्दों को समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
उपभेद :- इसके पुनः चार उपभेद होते हैं -
(अ) संयोजक
(ब) विभाजक
(स) विरोधबोधक और
(द) परिणामबोधक
(अ) संयोजक :- और, तथा, व, एवं
- वह अभी-अभी घर आया और सो गया।
(ब) विभाजक :- या, अथवा, चाहे, चाहे न, न तो, न की, अन्यथा, नहीं तो, वरना,
- इस बार मुझे सफल होना ही है चाहे जो हो जाए।
- बारिश में मत भीगना नहीं तो बीमार पड़ जाओगे।
- अब तुम आ रहे हो या मैं चला जाऊँ।
(स) विरोधबोधक :- लेकिन, किन्तु, परन्तु, मगर, पर, बल्कि
- उसने तो तुम्हारा बहुत इंतजार किया लेकिन तुम नहीं आये।
- मेरे जीवन में तो बहुत संकट आये मगर उसने मेरा साथ नहीं छोड़ा।
- पढ़ने में ही होशियार नहीं है, बल्कि कृषि के कार्य में भी कुशल है।
(द) परिणामबोधक :- अतः, इसलिए, अतएव
- कल आंधी बहुत तेज थी इसलिए सड़क पर बहुत पेड़ गिर गए।
- आज देरी आये हो अतः तुम्हें दंडित किया जायेगा।
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय :- किसी प्रधान उपवाक्य और आश्रित उपवाक्य को परस्पर जोड़ने वाले अव्यय शब्दों को व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
उपभेद :- इसके पुनः चार उपभेद होते हैं -
(अ) करणबोधक
(ब) संकेतबोधक
(स) स्वरूपबोधक
(द) उद्देश्यबोधक
(अ) करणबोधक :- कि, क्योंकि, जोकि
- हमें सदा जीवन अपना लेना चाहिए, क्योंकि जीवन कृत्रिमता अंततः कष्टदायक होती है।
- मैंने तुम्हें याद किया ही था, कि तुम आ गए।
(ब) संकेतबोधक :- अगर/यदि-तो, यद्यपि-तथापि, जहाँ-वहाँ/वहीँ,
- यद्यपि आपात् काल में जनता की सहायता व सुरक्षा की उत्तरदायी सरकार होती है, तथापि हर बार कुछ समाजसेवी संस्थाएँ और भामाशाह ही इस हेतु आगे आते हैं।
- जहाँ नारियों का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का निवास होता है।
(स) स्वरूपबोधक :- अर्थात्, मनो,
- अब यदि ओखली में सिर दे ही दिया, तो फिर धमके से क्या डरना अर्थात् जब काम शुरू ही कर दिया तो फिर मुसीबतों से क्या घबराना।
- प्रकृति इतनी रमणीक लग रही थी मनों स्वर्ग वहीँ हो।
(द) उद्देश्यबोधक :- ताकि, जिससे की, कि-परन्तु
- यात्री अपने साथ कम-से-कम सामान रखें ताकि यात्रा में परेशानी भी कम हो।
- उसने कहा तो था, कि ये रास्ता कठिनाइयों से भरा है, किन्तु छोटा होने के कारण हमने इसे ही चुना।
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साथियों, अगली पोस्ट में हम संबंधबोधक अव्यय के बारे में पढ़ेंगे। अगर पोस्ट अच्छी लगी जो तो इसे शेयर अवश्य करें।
पिछली पोस्ट के लिंक नीचे दिए गए हैं
समास (अव्ययीभाव समास) https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/05/samas.html
कर्मधारय व द्विगु समास https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/05/3.html
द्वंद्व और बहुव्रीहि समास https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/05/dvandva-samas.html
प्रत्यय (कृदंत प्रत्यय) https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/05/pratyay.html
प्रत्यय (तद्धित प्रत्यय) https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/05/pratyay-taddhit-pratyay.html
संज्ञा (व्यक्तिवाचक संज्ञा और जातिवाचक संज्ञा) https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/05/6.html
संज्ञा (पदार्थवाचक, समूहवाचक और भाववाचक संज्ञा ) https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/05/sangya-padarth-vachak-samooh-vachak-aur.html
अव्यय (क्रिया विशेषण) https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/06/101-avyay.html
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