नमस्कार मित्रों,
साथियों पिछली पोस्ट तक हमने विकारी व अविकारी शब्दों के बारे में पढ़ा था। आज के अध्याय से हम विकारी पदों में उत्पन्न होने वाले विकारी तत्त्वों के बारे में अध्ययन करेंगे। प्रत्येक शब्द मुख्य रूप से काल, वचन व लिंग के अनुसार परिवर्तित होता है। इसके प्रथम भाग में हम काल के बारे में अध्ययन करेंगे। ब्लॉग को Follow कर लें, जिससे नवीन Updates आपको सर्वप्रथम मिले। तो आइये शुरू करते हैं, आज का टॉपिक ........
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अध्याय - 11
काल
'काल' एक बहुअर्थी शब्द है, जिसके भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं - मृत्यु, अंत, समय इत्यादि। यहाँ 'काल' से हमारा तात्पर्य 'समय' से है। इसका संबंध वाक्य की क्रिया से होता है। विकारी शब्दों में एकमात्र 'क्रिया' ही ऐसा पद है जो काल के अनुसार रूपांतरित होता है।
परिभाषा :- किसी क्रिया के करने या होने के समय का बोध कराने वाले रूप को ही काल कहते हैं।
भेद :- काल के तीन भेद होते हैं -
(1) भूतकाल,
(2) वर्तमान काल तथा
(3) भविष्यत् काल
(1) भूतकाल :- किसी क्रिया के करने या होने के बीते हुए या अतीत का बोध कराने वाले रूप को भूतकाल कहते हैं।
उपभेद :- इसके पुनः छह भेद होते हैं -
(क) सामान्य भूत
(ख) पूर्ण भूत
(ग) अपूर्ण भूत
(घ) आसन्न भूत
(ङ) संदिग्ध भूत और
(च) हेतुहेतुमद भूत
(क) सामान्य भूत :- भूतकाल के सामान्य रूप का बोध कराने वाली क्रिया।
पहचान :- आ (पुल्लिंग) ई (स्त्रीलिंग) ए (बहुवचन) {ये क्रिया के अंत में प्रयुक्त होंगे।}
- मैंने अभी वहाँ एक धमाका सुना।
- कल उसने कक्षा में कविता सुनाई।
- सभी छात्र उस मैदान में आए।
(ख) पूर्ण भूत :- विगत समय में ही किसी क्रिया के पूर्ण होने का बोध कराने वाला रूप।
पहचान :- आ था/ता था (पुल्लिंग) ई थी/ती थी (स्त्रीलिंग), ए थे/ते थे (बहुवचन) {ये क्रिया के अंत में प्रयुक्त होंगे।}
- कल वो सब्जी वाला हमारे मोहल्ले में सब्जी बेचने आया था।
- शीतल कक्षा में सबसे मधुर गाती थी।
- हम उस मैदान में खेलते थे।
(ग) अपूर्ण भूत :- भूतकाल में किसी क्रिया की अपूर्णता का बोध कराने वाला रूप।
पहचान :- रहा था (पुल्लिंग), रही थी, (स्त्रीलिंग), रहे थे (बहुवचन)
- रौनक तालाब में तैर रहा था।
- माता खाना बना राही थी।
- सभी विद्यार्थी विद्यालय में प्रार्थना कर रहे थे।
(घ) आसन्न भूत :- निकट वर्तमान में ही समाप्त होने वाली क्रिया।
[नोट - इस क्रिया में विद्यार्थी को वर्तमान काल का भ्रम हो सकता है, किन्तु मूल क्रिया का पुल्लिंग में आकारांत, स्त्रीलिंग में इकारांत और बहुवचन में एकारांत इसे भूतकाल का सिद्ध करते हैं।]
पहचान :- आ है (पुल्लिंग), ई है, (स्त्रीलिंग), ए हैं (बहुवचन)
- वह अभी-अभी घर आया है।
- मैंने भी किसी से ये बात सुनी है।
- सभी बाराती सजधज कर आज आए हैं।
(ङ) संदिग्ध भूत :- विगत समय में किसी क्रिया के करने या होने में किसी संदेह का बोध कराने वाला रूप।
पहचान :- आ होगा/ता होगा (पुल्लिंग), ई होगी/ती होगी (स्त्रीलिंग), ए होंगे/ते होंगे (बहुवचन)
- अभी वह पढ़ता होगा।
- तुमने तो ये बात अवश्य सुनी होगी।
- वे वहाँ अभी भी जाते होंगे।
(च) हेतुहेतुमद भूत :- जहाँ दो भूतकालिक क्रियाएँ एक-दूसरे पर आश्रित हो वहाँ हेतुहेतुमद भूतकाल होता है।
पहचान :- (पुल्लिंग) (स्त्रीलिंग) (बहुवचन)
- तुम्हारे बुलाने पर वो आया।
इस वाक्य में 'बुलाने' क्रिया भी भूतकालिक है और 'आया' क्रिया भी भूतकालिक है, और दूसरी क्रिया का होना पहली क्रिया के होने पर आश्रित है। इसी प्रकार अन्य उदाहरणों का भी अध्ययन करें।
- बरसात होने पर किसानों ने हल जोते।
- अलार्म बजने पर मैं जागा।
(2) वर्तमान काल :- किसी क्रिया के करने या होने के यथार्थ स्वरूप (जो चल रहा है) का बोध करने वाले रूप को वर्तमानकाल कहते हैं।
उपभेद :- इस काल के तीन उपभेद होते हैं -
(क) सामान्य वर्तमान
(ख) अपूर्ण वर्तमान
(ग) संदिग्ध वर्तमान।
(क) सामान्य वर्तमान :- किसी क्रिया के सामान्य रूप से समाप्त होने का बोध करने वाला रूप।
पहचान :- ता है (पुल्लिंग), ती है (स्त्रीलिंग), ते हैं (बहुवचन)
- सौरभ प्रतिदिन मंदिर जाता है।
- ये नदी सालभर बहती है।
- रात के समय में खेतों में बहुत आवारा पशु आते हैं।
(ख) अपूर्ण वर्तमान :- वर्तमान की किसी क्रिया की अपूर्णता का बोध कराने वाला रूप।
पहचान :- रहा है (पुल्लिंग), रही है (स्त्रीलिंग), रहे हैं (बहुवचन)
- उसके स्वास्थ्य में अब कुछ सुधार हो रहा है।
- आज, बहुत शीतल हवा चल रही है।
- कुछ लोग गली में बेतुकी बातों पर ही शोर मचा रहे हैं।
(ग) संदिग्ध वर्तमान :- वर्तमान काल की किसी क्रिया के करने या होने में किसी संदेह या शंका का बोध करने वाला रूप।
पहचान :- ता होगा (पुल्लिंग), ती होगी (स्त्रीलिंग), ते होंगे (बहुवचन)
- रमेश अभी भी वहीँ पर काम करता होगा।
- वो तुम्हारी ख़ुशी से जलती होगी।
- गाँव के बाहर तालाब के किनारे स्थित विशाल बरगद के पेड़ पर अभी भी शाम को पक्षी चहकते होंगे।
(3) भविष्यत् काल :- किसी क्रिया के करने या होने के भावी/आगामी काल का बोध करने वाले रूप को भविष्यत् काल कहते हैं।
उपभेद :- भविष्यत् काल के चार उपभेद होते हैं -
(क) सामान्य भविष्यत्
(ख) संभाव्य भविष्यत्
(ग) सातत्य भविष्यत्
(घ) हेतुहेतुमद भविष्यत्।
(क) सामान्य भविष्यत् :- किसी क्रिया के आने वाले समय में करने या होने का बोध कराने वाला रूप।
पहचान :- एगा (पुल्लिंग), एगी (स्त्रीलिंग) एंगे (बहुवचन)
- अभी तो सोएगा।
- कल लता यहाँ आएगी।
- कल से चिकित्सक अपनी माँगों को ले कर हड़ताल करेंगे।
(ख) संभाव्य भविष्यत् :- किसी क्रिया के आने वाले समय में होने की सम्भावना का ज्ञान कराने वाला रूप।
[नोट - इसमें भविष्यत् काल की क्रिया के साथ शायद, संभवतः, संभवतया इत्यादि शब्द प्रयुक्त होते हैं।]
पहचान :- (पुल्लिंग) (स्त्रीलिंग) (बहुवचन)
- संभवतः, कल तक बरसात हो जाएगी।
- शायद, शाम तक तो वो घर पहुँच जायेंगे।
- लगता है, अब कुछ बड़ा होगा।
(ग) सातत्य भविष्यत् :- वर्तमान की किसी क्रिया के भविष्य में भी जारी रहने का बोध कराने वाला रूप।
पहचान :- (पुल्लिंग) (स्त्रीलिंग) (बहुवचन)
- मैं आगे भी आपके ऐसे ही काम आता रहूँगा।
- हमारी दोस्ती दिनोंदिन ऐसे ही बढ़ती जाएगी।
(घ) हेतुहेतुमद भविष्यत् :- भविष्यत् कालिक दो क्रियाएँ एक-दूसरे पर आश्रित हो वहाँ हेतुहेतुमद भविष्यत् काल होता है।
पहचान :- (पुल्लिंग) (स्त्रीलिंग) (बहुवचन)
- आप बुलाएँगे तो हम जरूर आएँगे।
- आगे कोई जानकारी मिलेगी तो आपको अवश्य सूचित किया जाएगा।
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कैसा लगा आज का टॉपिक comment अवश्य करें। अगलर पोस्ट में हम 'वचन' अध्याय पर चर्चा करेंगे। अगर ये पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे शेयर अवश्य करें।
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Vvvrry
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