5. द्वंद्व समास
जहाँ दोनों पद प्रधान हो तथा उनके मध्य प्रयुक्त 'और', 'तथा', 'व', 'एवं', 'आदि', 'इत्यादि', 'या', 'अथवा' इन अव्यय पदों का लोप हो वहाँ द्वंद्व समास होता है।भेद :- इसके तीन मुख्य भेद होते है -
अ. इतरेतर द्वंद्व समास,
ब. समाहार द्वंद्व समास और
स. विकल्प द्वंद्व समास
अ. इतरेतर द्वंद्व समास :- दोनों पद प्रधान होते हैं और एक वचन के होते है। इनके मध्य 'और', 'तथा', 'व', 'एवं' इनमे से किसी भी एक अव्यय का प्रयोग हो सकता है।माता-पिता :- माता और पिता
धनुष-बाण :- धनुष और बाण
भाई-बहिन :- भाई और बहिन
आहार-विहार :- आहार और विहार
पति-पत्नी :- पति और पत्नी
शचीन्द्र :- शची और इन्द्र
धर्मार्थ :- धर्म और अर्थ
लोभ-मोह :- लोभ और मोह
वर-वधू :- वर और वधू
दूध-रोटी :- दूध और रोटी
नमक-मिर्च :- नमक और मिर्च
राधा-श्याम :- राधा और श्याम
सीता-राम :- सीता और राम
देवर-भाभी :- देवर और भाभी
दादा-पोता :- दादा और पोता
प्रातः-संध्या :- प्रातः और संध्या
ब. समाहार द्वंद्व समास :- दोनों पद प्रधान होते हैं और विग्रह करने पर कम से कम एक पद का वचन भिन्न होता है, साथ ही 'आदि' व 'इत्यादि' अव्यय प्रत्युक्त हो वहाँ समाहार द्वंद्व समास होता है।
पशु-पक्षी :- पशुओं और पक्षियों का समाहार (पशु पक्षी आदि/इत्यादि )
कीट-पतंग :- कीटों व पतंगों का समाहार (कीट पतंग आदि/इत्यादि)
फल-फूल :- फलों और फूलों का समाहार (फल फूल आदि/इत्यादि)
प्राणी-पादप :- प्राणियों और पादपों का समाहार (प्राणी पादप आदि/इत्यादि)
वृक्ष-वल्लरी :- वृक्षों और वल्लरियों का समाहार (वृक्ष वल्लरी आदि/इत्यादि)
हाथ-पैर :- हाटों और पैरों का समाहार (हाथ पैर आदि/इत्यादि)
हाथ-मुँह :- हाथों और मुँह का समाहार (हाथ मुँह आदि/इत्यादि)
आँख-कान :- आँखों और कानों का समाहार (आँख कान आदि/इत्यादि)
नाक-कान :- नाक और कानों का समाहार (नाक कान आदि/इत्यादि)
दाल-रोटी :- दाल और रोटियों का समाहार (दाल रोटी आदि/इत्यादि)
कंद-मूल :- कांडों और मूलों का समाहार (कंद मूल आदि/इत्यादि)
जाति-धर्म :- जातियों और धर्मों का समाहार (जाति धर्म आदि/इत्यादि)
शाक-सब्जी :- शाकों और सब्जियों का समाहार (शाक सब्जी आदि/इत्यादि)
वेद-वेदांग :- वेदों और वेदांगों का समाहार (वेद वेदांग आदि/इत्यादि)
देवासुर :- डिवॉन और असुरों का समाहार (देव असुर आदि/इत्यादि)
नदी-पर्वत :- नदियों और पर्वतों का समाहार (नदी पर्वत आदि/इत्यादि)
संख्या समाहार द्वंद्व समास :- जहाँ दो संख्या पद मिलकर किसी एक संख्या की रचना करते हैं, वहाँ संख्या समाहार द्वंद्व समास होता है।
(विशेष :- 1. इन उदाहरणों में कोई इकाई संख्या प्रयुक्त नहीं होती है।
2. शून्य से पूर्ण होने वाली संख्या (जैसे 10, 20, 30. . . . 100, 200, 300. . . .) भी प्रयुक्त नहीं होती है।
3. पूर्णांक से एक कम जैसे - 19, 29, 39, 49, 59. . . . (हिंदी के 'उन्' उपसर्ग से बनने वाली संख्या) भी इनमें प्रयुक्त नहीं होती है। )
उन्नीस :- एक कम बीस
उन्तीस :- एक कम तीस
उन्तालीस :- एक कम चालीस
उनचास :- एक कम पच्चास
उनसठ :- एक कम साठ
उनहतर :- एक कम सत्तर
उनासी :- एक कम अस्सी
उन्नब्बे :- एक कम नब्बे
स. विकल्प द्वंद्व समास :- जहाँ दोनों पद प्रधान हो किन्तु एक-दूसरे के विपरीत अर्थ वाले हो तथा उनके मध्य प्रयुक्त 'या' अथवा' इन अव्ययों का लोप हो वहाँ विकल्प द्वंद्व समास होता है।
दिन-रात :- दिन या रात
हानि-लाभ :- हानि या लाभ
शुभाशुभ :- शुभ या अशुभ
चराचर :- चार या अचर
यातायात :- यात (जाना) या आयात (आना)
गमन-आगमन :- गमन या आगमन
गर्म-ठंडा :- गर्म या ठंडा
पाप-पुण्य :- पाप या पुण्य
थोड़ा-बहुत :- थोड़ा या बहुत
आजकल :- आज या कल
जन्म-मृत्यु :- जन्म या मृत्यु
मित्र-शत्रु :- मित्र या शत्रु
गर्व-ग्लानि :- गर्व या ग्लानि
हर्ष-विषाद :- हर्ष या विषाद
आदि-अंत :- आदि या अंत
संख्या विकल्प द्वंद्व समास :- जहाँ किन्हीं दो संख्याओं के मध्य किसी विकल्प का बोध हो वहाँ संख्या विकल्प द्वंद्व समास होता है।
एक-दो :- एक या दो
दो-तीन :- दो या तीन
चार-पाँच :- चार या पाँच
पाँच-सात :- पाँच या सात
आठ-दस :- आठ या दस
दस-बारह :- दस या बारह
दस-पंद्रह :- दस या पंद्रह
पंद्रह-बीस :- पंद्रह या बीस
6. बहुव्रीहि समास
जहाँ दोनों पदों को छोड़ कर कोई अन्य अर्थ (तीसरा अर्थ) प्रधान हो वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। इस समास में द्वंद्व समास को छोड़ कर शेष सभी समासों के उदाहरण प्राप्त हो जाते हैं, किन्तु इन सब का अन्य अर्थ प्राप्त होता है।
(क) उपसर्गों के योग से अन्यार्थ की प्राप्ति
विद्रुम :- विशिष्ठ है जो द्रुम/पेड़ (कल्पवृक्ष)वितुण्ड :- विशिष्ठ है तुण्ड/मुख जिसका (हाथी)
विनायक :- श्रेष्ठ है जो नायक वह (गणेश)
अनुचर/अनुगामी :- पीछे चलने वाला है जो वह (सेवक)
अच्युत :- नहीं है जो च्युत/अलग किसी से वह (विष्णु)
(ख) संज्ञा पदों के योग से अन्यार्थ की प्राप्ति
उमापति :- उमा के है जो पति वह (शिव)रमापति :- रमा के है जो पति वह (श्री राम/विष्णु)
प्रजापति :- प्रजा के है जो पति वह (ब्रह्मा)
लंकापति :- लंका का है जो पति वह (रावण)
भूपति :- भूमि का है जो पति वह (राजा)
रतिपति :- रति के है जो पति वह (कामदेव)
राकापति :- राका/रात्रि का है जो पति (चंद्र)
पशुपति :- समस्त प्राणियों के हैं जो अधिपति वह (शिव)
मूषकवाहन :- मूषक/चूहा है वाहन जिसका वह (गणेश)
गजवाहन :- हाथी है वाहन जिसका वह (इन्द्र)
मकरवाहन :- मगरमच्छ है वाहन जिसका वह (गंगा)
सिंहवाहिनी :- सिंह है वाहन जिसका वह (दुर्गा)
हंसवाहिनी :- हंस है वाहन जिसका वह (सरस्वती)
श्वानवाहन :- श्वान/कुत्ता है वाहन जिसका वह (शनि/भैरव)
वृषवाहन :- वृष/बैल है वहन जिसका वह (शिव)
चक्रपाणि :- चक्र है हाथों में जिसके वह (विष्णु/श्री कृष्ण)
शूलपाणि :- त्रिशूल है हाथों में जिसके वह (शिव)
पिनाकपाणि :- पिनाक नामक धनुष है हाथों में जिसके वह (शिव)
गदापाणि :- गदा है हाथों में जिसके वह (हनुमान)
वज्रपाणि :- वज्र हाथों में जिसके वह (इंद्र)
चंद्रशेखर :- चंद्र हैं ललाट पर जिसके वह (शिव)
हिरण्यगर्भा :- हिरण्य/तेज है गर्भ में जिसके वह (सूर्य/ब्रह्मा)
पद्मनाभ :- पद्म/कमल है नाभि में जिसके वह (विष्णु)
काकोदर :- काक/विष है उदर/पेट में जिसके वह (सर्प)
शाखामृग :- शाखाओं पर विचरण करने वाला है जो मृग वह (वानर)
सूर्यपुत्र :- सूर्य का है जो पुत्र वह (शनि)
रवितनया :- रवि/सूर्य की है जो पुत्री वह (यमुना)
जनकनन्दिनी :- जनक की है पुत्री जो वह (सीता)
(ग) विशेषणों के योग से अन्यार्थ प्राप्ति
महादेव :- महान है जो देव वह (शिव)वक्रतुण्ड :- वक्र है तुण्ड/मुख जिसका वह (गणेश)
लम्बोदर :- लंबा है उदर/पेट जिसका वह (गणेश)
महोदर :- महान/बड़ा है उदर/पेट जिसका वह (भीम)
नीलकंठ :- नीला है कंठ जिसका वह (शिव/मोर)
रक्ताम्बर :- लाल है वस्त्र जिसके वह (लक्ष्मी/दुर्गा)
श्वेताम्बर :- सफ़ेद है वस्त्र जिसके वह (जैन धर्म का एक पंथ)
(घ) उपमानों के योग से अन्यार्थ प्राप्ति
राजीवलोचन :- कमल हे समान है नेत्र जिसके वह (राम)घनश्याम :- घन/बादल के सामान है सांवला जो वह (कृष्ण)
रक्तलोचन :- रक्त के सामान लाल है नेत्र जिसके वह (कबूतर)
(ङ) संख्या पदों के योग से अन्यार्थ प्राप्ति
एकदन्त :- एक ही है दन्त जिसका वह (गणेश)द्विरद :- दो हैं बाहरी दाँत जिसके वह (हाथी)
त्रिनेत्र/त्र्यंबक :- तीन है नेत्र जिसके वह (शिव)
चतुरानन :- चार है आनन/मुख जिसके वह (ब्रह्मा)
चतुर्भुज :- चार हैं भुजाएं जिसकी वह (विष्णु)
पंचनद :- पांच नदियों का प्रवाह है जहाँ (पंजाब)
षण्मुख :- छः हैं मुख जिसके वह (कार्तिकेय)
षट्पद :- छह हैं पद (पैर) जिसके वह (भंवरा)
सतसई/सप्तशती :- सात सौ छंदों में रचित है जो रचना (हिंदी और संस्कृत की काव्य शैली)
अष्टाध्यायी :- आठ अध्यायों वाली है रचना जो वह (पाणिनि कृत व्याकरण)
दशानन/दशकंधर :- दस है मुख जिसके वह (रावण)
शतदल :- सौ है पंखुड़ियाँ जिसकी वह (कमल)
सहस्त्राक्ष :- हजारों हैं आँखें जिसकी वह (इंद्र)
(च) क्रियापदों के योग से अन्यार्थ प्राप्ति
शूलधर :- त्रिशूल को धारण किया है जिसने वह (शिव)चक्रधर :- चक्र को धारण किया है जिसने (कृष्ण)
वज्रधर :- वज्र को धारण किया है जिसने वह (इंद्र)
गदाधर :- गदा को धारण किया है जिसने (हनुमान)
गिरिधारी :- गिरि को धारण किया है जिसने (कृष्ण)
चंद्रधर :- चंद्र को धारण किया है जिसने (शिव)
विषधर :- विष को धारण किया है जिसने (सर्प)
वसुंधरा :- समस्त सम्पदाओं को धारण किया है जिसने (पृथ्वी)
रजनीचर :- रात को विचरण करने वाला है जो (उल्लू, चोर)
दिनकर :- दिन को करने वाला है जो वह (सूर्य)
रजनीकर :- रात्रि को करने वाला है जो वह (चंद्र)
माखनचोर :- माखन को चुराने वाला है जो (श्री कृष्ण)
(छ) प्रत्ययों के योग से अन्यार्थ की प्राप्ति
शिवानी :- शिव की है जो अर्धांगिनी वह (पार्वती/गंगा)इन्द्राणी :- इंद्र की है जो अर्धांगिनी वह (शची)
कामायनी :- कामदेव की है जो अर्धांगिनी वह (रति)
नारायणी :- नारायण की है जो अर्धांगिनी वह (लक्ष्मी)
ब्रह्माणी :- ब्रह्मा की है जो अर्धांगिनी वह (सरस्वती)
चंद्रमुखी :- चंद्र के समान मुख वाली है जो वह (कोई स्त्री)
साथिओं, आज के इस पोस्ट के साथ ही समास अध्याय समाप्त गया है। इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और किसी प्रकार की समस्या व सुझाव हेतु कमेंट अवश्य करें। अगला पोस्ट 'उपसर्ग' अध्याय पर आधारित होगा, जो आपके लिए बहुत उपयोगी होगा। नियमित रूप से अपडेट पाने के लिए blog को follow अवश्य करें। और पोस्ट कैसी लगी इस पर भी कमेंट करना न भूलें।
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