Wednesday, May 20, 2020

Vyanjan Sandhi

नमस्कार मित्रों,
मैं अपने google blog पर आपका स्वागत करता हूँ। साथियों पिछली पोस्ट में मैंने संधि के सामान्य परिचय के साथ स्वर संधि के विषय में बताया था। आज व्यंजन संधि के आवश्यक नियमों को बताने जा रहा हूँ।  नियमित रूप से पोस्ट का अपडेट पाने के लिए मेरे ब्लॉग deepaksikhwal.blogspot.com को अवश्य सब्स्क्राइब करें। किसी प्रकार की समस्या या सुझाव के लिए कमेंट अवश्य करें। तो शुरू करते हैं आज का टॉपिक--------
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व्यंजन संधि
व्यंजन संधि :- किसी व्यंजन वर्ण के बाद किसी स्वर या व्यंजन वर्ण के योग से होने वाले ध्वनि परिवर्तन को व्यंजन संधि कहते हैं।

नियम :- 1. त् के बाद यदि च/छ हो तो त् का भी च् हो जाता है। 
उत् + चारण = उच्चारण
वृहत् + चेतना = बृहच्चेतना
जगत् + चिंतन = जगच्चेतना
भगवत् + चरण = भगवच्चरण
विद्युत् + चालक = विद्युच्चालक
महत् + चरित्र = महाच्चरित्र
वात् + चलित = वाच्चलित
उत् + छल = उच्छल
मह्त् + छल = महच्छल
उत् + छलित = उच्छलित

नियम :- 2. त्/द् के बाद यदि ज हो तो त्/द् का ज् हो जाता है। 
उत् / उद् + ज्वल = उज्ज्वल
जगद् + जयिनी = जगज्जयिनी
महद् + ज्वाला = महज्ज्वाला
जगत् + जयिनी = जगज्जयिनी
विद्युत् + जनित = विद्युज्जनित
तडित् + ज्योति = तड़िज्ज्योति
यावद् + जीवन = यावज्जीवन
वृहत् + जाल = वृहज्जाल

नियम :- 3. त्/द् के बाद यदि 'श' हो तो त्/द् का च् तथा 'श' का छ हो जाता है। 
उत् + शासन = उच्छासन
उत् + श्वास = उच्छ्वास
जगत् + शांति = जगच्छान्ति
उत् + शृङ्खल = उच्छृंखल
महत् + श्रुति = महच्छ्रुति
शरत् + शशि = शरच्छशि

नियम :- 4. त् के बाद यदि ट हो तो त् का भी ट् हो जाता है। 
तत् + टीका = तट्टीका
तत् + टंकार = तट्टंकार
वृहत् + टीका = वृहट्टीका

नियम :- 5. त्/द् के बाद यदि ड हो तो त्/द् का भी ड् हो जाता हैं। 
उत् + डीन = उड्डीन
उत् + डयन = उड्डयन

नियम :- 6. किसी स्वर के बाद यदि छ हो तो छ से पूर्व च् का आगमन होगा। 
स्व + छ = स्वच्छ
वि + छेद = विच्छेद
परि + छेद = परिच्छेद
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया
छत्र + छाया = छत्रच्छाया
प्र + छाया = प्रच्छाया
प्रति + छाया = प्रतिच्छाया
अनु + छेद = अनुच्छेद

नियम :- 7. किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के बाद यदि किसी वर्ग के तृतीया, चतुर्थ, अंतःस्थ या स्वर वर्ण हो तो प्रथम पदांत प्रथम वर्ण का अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है। 
(क) क् + ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, ल, व तथा स्वर = ग्
दिक् + गज = दिग्गज
प्राक् + घटित = प्रग्घटित
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
प्राक् + धर्म = प्राग्धर्म
वाक् + बंधन = वाग्बन्धन
दिक् + भ्रमित = दिग्भ्रमित
वाक् + युद्ध = वाग्युद्ध
दिक् + राजा = दिग्राजा
वाक् + लव = वाग्लव
वाक् +  वरदान = वाग्वरदान
वाक् + ईश = वागीश
प्राक् + उक्ति = प्रागुक्ति
दिक् + अंत = दिगंत
वाक् + आराधना = वागाराधना
वाक् + उचित = वागुचित
(ख) च् + स्वर = ज्  (च् के साथ व्यंजन वर्णों के उदाहरण प्राप्त नहीं होते हैं।)
अच् + अन्त = अजन्त
पंच् + आब = पंजाब
पंच् + उक्ति = पंजुक्ति
(ग) ट् + ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, ल, व तथा स्वर = ड्
षट् + ग्रन्थ = षड्ग्रन्थ
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
षट् + धर्म = षड्धर्म
षट् + यंत्र = षड्यंत्र
षट् + वचन = षड्वचन
षट् + आनन = षडानन
षट् + उक्ति = षडुक्ति
(घ) त् + ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व तथा स्वर = द्
सत् + गति = सद्गति
उत् + घाटन = उद्घाटन
तत् + बंधन = तद्बंधन
सत् + भाव = सद्भाव
वृहद् + योग = बृहद्योग
सत् + रूप = सद्रूप
सत् + विचार = सद्विचार
(ङ) प् + ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व तथा स्वर = ब्
सुप् + धातु = सुब्धातु
सुप् + योग = सुब्योग
सुप् + अन्त = सुबन्त

नियम :- 8. किसी वर्ग के तृतीय वर्ण के बाद यदि किसी वर्ग के प्रथम, द्वितीय व सत्व (स) वर्ण हो तो प्रथम पदांत वर्ण का अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण हो जाता है। 
(क) ग् + क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, स = क्
दिग् + कोण = दिक्कोण
प्राग् + कथन = प्राक्कथन
वाग् + टीका = वाक्टीका
प्राग् + तन = प्राग्तन
प्राग् + सर्ग = प्राक्सर्ग
(ख) ड् + क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, स = ट्
षड् + कथन = षट्कथन
षड् + कोण = षट्कोण
षड् + चरण = षट्चरण 
षड् + टीका = षट्टीका
षड् + तीर्थ = षट्तीर्थ 
षड् + पद =षट्पद
षड् + सर्ग = षट्सर्ग 
(ग) द् + क, ख, त, थ, प, फ, स = त्
सद् + कर्म = सत्कर्म
तद् + पर = तत्पर
उद् + कीर्ण = उत्कीर्ण
जगद् + पति = जगत्पति
वृहद् + कथा = वृहत्कथा
महद् + परिवर्तन
भगवद् + कृपा = भगवत्कथा
उद् + खनन = उत्खनन
सद् + संग = सत्संग
(घ) ब् + क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, स = प्
सुब् + कार्य = सुप्कार्य

नियम :- 9. किसी वर्ग के चतुर्थ वर्ण (ध्/भ्) के बाद यदि पुनः किसी वर्ग का चतुर्थ वर्ण (ध्) हो तो प्रथम पदांत चतुर्थ वर्ण 'ध्/भ्' का अपने ही वर्ग का तृतीय वर्ण 'द्/ब्' हो जाता है। 
ध् + ध/भ = द्
शुध् + ध = शुद्ध
युध् + ध = युद्ध
बुध् + धि = बुद्धि
क्रुध् + ध = क्रुद्ध
रुध् + ध = रुद्ध
क्षुभ् + ध = क्षुब्ध
लुभ् + धक = लुब्धक
लभ् + धि = लब्धि

नियम :- 10. 'त्/द्' के बाद यदि 'ल' हो तो 'त्/द्' का भी 'ल्' हो जाता है। 
उत् / उद् + लेख = उल्लेख 
पत् + लव = पल्लव 
तत् + लीन = तल्लीन 
उत् + लास = उल्लास 
महत् + लाभ = महल्लाभ 
भगवत् + लीला = भगवल्लीला

नियम :- 11. 'क्' के बाद यदि 'ह' हो तो 'क्' का 'ग्' तथा 'ह ' का 'घ' हो जाता है। 
वाक् + हरि = वाग्घरि 
प्राक् + हनन = प्रग्घनन 
वाक् + हर्ष = वाग्घर्ष 
दिक् + हनन = दिग्घनन

नियम :- 12. 'त्' के बाद यदि 'ह' हो तो 'त्' का 'द्' तथा 'ह' का 'ध' हो जाता है। 
उत् + हर्ष = उद्धर्ष
तत् + हित = तद्धित
महत् + हर्ष = महद्धर्ष 
उत् + हरण = उद्धरण 
पत् + हति = पद्धति 

नियम :- 13. किसी वर्ग के प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त् और प्) के बाद यदि किसी वर्ग का पंचम वर्ण (म/न) हो तो प्रथम पदांत वर्ण का अपने ही वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है। 
वाक् + मय = वांङ्मय 
प्राक् + मूर्ति = प्राङ्मूर्ति 
षट् + मार्ग = षण्मार्ग  
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति 
उत् + मुख = उन्मुख
उत् + नति = उन्नति
तत् + मय = तन्मय
महत् + मना = महन्मना 
वृहत् + नला = वृहन्नला 
आप् + मय = आम्मय 

नियम :- 14. 'ट्/ड्' के बाद यदि 'न' हो तो 'ट्/ड्' का 'ण्' तथा 'न' का भी 'ण ' हो जाता है। 
षट् + नाम = षण्णाम 
षड् + नियम = षण्णियम
षट् + नीति = षण्णीति 

नियम :- 15. 'म्/न्' के बाद यदि कोई भी व्यंजन वर्ण हो तो 'म्/न्' का पूर्व वर्ण पर अनुस्वार (ां) हो जाता है। 
सम् + कीर्ण = संकीर्ण 
सम् + चार = संचार
सम् + जीव = संजीव 
मृत्युम् + जय = मृत्युंजय 
शम् + कर = शंकर 
भयम् + कर = भयंकर 
अन् + जलि = अंजलि 
शत्रुन् + जय = शत्रुंजय 

नियम :- 16. 'म्/न्' के बाद यदि कोई स्वर वर्ण हो तो 'म्/न्' के साथ स्वर का मात्रा के रूप में योग हो जाता है। 
सम् + आचार = समाचार 
सम् + उचित = समुचित 
सम् + ऊर्ध्व = सामूर्ध्व 
सम् + एकित = समेकित
सम् + ओजस्वी = समोजस्वी 
सम् + ईक्षा = समीक्षा 
सम् + ऋद्धि = समृद्धि 
अन् + अंत = अनंत 
अन् + आचार = अनाचार 
अन् + इच्छा = अनिच्छा 
अन् + उचित = अनुचित 
अन् + ऋत = अनृत 
अन् + ओजस्वी = अनोजस्वी 

नियम :- 17. 'सम्' उपसर्ग के बाद यदि कोई 'कृ' धातु पद हो तो 'म्' का पूर्व वर्ण पर अनुस्वार तथा 'क' से पूर्व 'स्' का आगमन हो जायेगा।  
सम् + कार = संस्कार 
सम् + करण = संस्करण (संकरण)
सम् + कृति = संस्कृति 
सम् + कार्य = संस्कार्य 
सम् + क्रिया = संस्क्रिया 
सम् + कृत = संस्कृत 

नियम :- 18. 'परि' उपसर्ग के बाद यदि कोई 'कृ' धातु पद हो तो 'क' से पूर्व 'ष्' का आगमन हो जायेगा। 
परि + कृत = परिष्कृत 
परि + कार = परिष्कार 
परि + करण = परिष्करण 
परि + क्रिया = परिष्क्रिया 
परि + कार्य = परिष्कार्य 

नियम :- 19. संस्कृत के अलुक् (जिनमें कोई विभक्ति शेष हो) पदों; जिनके अंत में 'अन्', 'इन्', 'अस्' हो, के बाद यदि कोई स्वर या व्यंजन वर्ण हो तो विभक्ति चिह्नों (न्, स् आदि) का लोप हो जाता है। साथ ही पूर्व प्रयुक्त 'इ' स्वर का भी दीर्घीकरण हो जाता है। 
संन्यासिन् + वर्ग = संन्यासीवर्ग 
प्राणिन् + वर्ग = प्राणीवर्ग 
आत्मन् + हन्ता = आत्महंता 
मनस् + ईश = मनीष (श का ष में रूपांतरण हो जाता है।)
पक्षिन् + राज = पक्षीराज

नियम 20. 'अहन्' शब्द के बाद यदि 'र' के अतिरिक्त कोई वर्ण हो तो प्रथम पण के अंतिम 'न्' का 'र' हो जाता है और उत्तर पदांत व्यंजन का भी लोप हो जाता है। (उत्तर पदांत किसी भी स्वर का अ स्वर में रूपांतरण हो जरा है।)
अहन् + मुख = अहर्मुख 
अहन्  + पूर्व = अहर्पूर्व 
अहन् + निशि = अहर्निश 
अहन् + अहन् = अहरह

नियम 21. 'अहन्' शब्द के बाद यदि 'र' हो तो 'अहन्' का 'अहो' हो जाता है, और पदांत किसी भी स्वर के स्थान पर 'अ' हो जाता है। 
अहन् + रात्रि = अहोरात्र
अहन् + रश्मि = अहोरश्मि 

नियम :- 22. प्रथम पद में किसी भी स्वर से समाप्त होने वाले पद के बाद यदि 'करण' शब्द हो तो प्रथम पदांत स्वर 'ई' हो जाता है। 
शुद्ध + करण = शुद्धीकरण 
तुष्ट + करण = तुष्टीकरण 
प्रस्तुत + करण = प्रस्तुतीकरण 
प्रमाण + करण = प्रमाणीकरण 
स्पष्ट + करण = स्पष्टीकरण 
आत्म + करण = आत्मीकरण

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