Sunday, May 24, 2020

Karmdharay Aur Dwigu Samas


नमस्कार साथियों,
        आज हम समास के तीसरे भेद कर्मधारय समास के बारे में विस्तार से जानने का प्रयत्न करेंगे। संस्कृत व्याकरण में इसे समानाधिकरण तत्पुरुष समास बता कर तत्पुरुष समास का ही भेद बताया गया है। तो आइए चर्चा करते हैं इस विषय में - - -

3. कर्मधारय समास 

       जहाँ एक पद विशेषण या उपमान तथा शेष पद विशेष्य या उपमेय हो वहाँ कर्मधारय समास होता है। संस्कृत व्याकरण में इसे समानाधिकरण तत्पुरुष समास बताया गया है।

विशेषण :- जो विशेषता बताते हैं।
विशेष्य :- जिसकी विशेषता बताते हैं।
(विशेष :- विशेषण की वृत्ति निश्चयात्मक है। इसमें उत्तर पद के गुण, दोष, दशा, अवस्था इत्यादि से संबंधित विशेषताएँ बताई जाती है।)
जैसे :- नीलगगन ( इस उदहारण में 'गगन' की निश्चयात्मकता 'नीली' बताई गई है, जो की विशेषता या विशेषण  है, अर्थात् नीला है जो गगन। )
उपमान :- जिसकी उपमा दी जाये।
उपमेय :- जिसको उपमा दी जाये।
( नोट - यहाँ उपमा से तात्पर्य है तुलना या समानता। )
(विशेष :- उपमा की वृत्ति तुलनात्मक होती है। इसमें एक को दूसरी के समान बताया जाता है।)
जैसे :- अमृतवचन इस उदाहरण में 'अमृत' शब्द 'वचन' शब्द की निश्चयात्मकता न बता कर समानता बता रहा है, अर्थात् अमृत के सामान वचन। )

कर्मधारय समास के उदाहरण निम्न प्रकार के हो सकते है -

अ. पूर्वपद विशेषण :- इन उदाहरणों में पहला पद विशेषण होता है।

अर्द्धचन्द्र :- आधा है जो चाँद 
शीतलवायु :- शीतल है जो वायु 
पूर्णेन्दु :- पूरा है जो चाँद 
अधमरा :- आधा मारा है जो 
शांतमन :- शांत है जो मन 
सद्बुद्धी :- श्रेष्ठ है जो बुद्धि 
कापुरुष :- कायर है जो पुरुष 
कृष्णसर्प :- काला है जो साँप 
कालीमिर्च :- काली है जो मिर्च 
नीलोत्पल :- नीला है जो कमल 
बड़भागी :- बड़े भाग्य वाला है जो 
सन्मार्ग :- श्रेष्ठ है जो मार्ग 
वीरपुरुष :- वीर है जो पुरुष 
दीर्घजीवी :- लम्बी जीने वाला है जो 
वृद्धपुरुष :- वृद्ध है जो पुरुष 

ब. उत्तरपद विशेषण :- इन उदाहरणों में उत्तर पद विशेषण होगा।

पुरुषश्रेष्ठ :- पुरुष है जो श्रेष्ठ  
नरोत्तम :- नर है जो उत्तम 
वचनश्रेष्ठ :- वचन है जो श्रेष्ठ 
वचनतिक्त :- वचन है जो तीखे 
वर्णपीत :- वर्ण है जो पीला 
(कुछ विद्वान ऐसे कुछ उदाहरणों में सप्तमी तत्पुरुष समास मानते है। समस्त पद में विशेषण के होते हुए भी यदि तत्पुरुष समास माना जायेगा तो फिर कर्णधारय समास के होने का तो महत्त्व ही समाप्त हो जायेगा। )

स. पूर्वपद उपमान :- इन उदाहरणों में प्रथम पद उपमान होगा।

कमलनयन :- कमल के समान सुन्दर है जो नयन 
कोकिलकंठ :- कोयल के समान मधुर है जो कंठ 
घनश्याम :- घन (बादल) के समान है जो श्याम (साँवला)
चन्द्रवदन/चन्द्रमुख :- चंद्र के समान सुन्दर है जो (वदन) मुख 
तुषारधवल :- तुषार (कोहरे) के समान है जो धवल (सफ़ेद)
दैत्याकार :- दैत्य के समान विशाल है जो आकार 
पाषाणहृदय :- पाषाण के समान कठोर है हृदय जिसका 
दुग्धधवल :- दूध के समान है जो सफ़ेद 
वज्रवचन :- वज्रा के समान है जो कठोर है जो वचन 
सिंधुहृदय :- समुद्र के समान गहरा है जो हृदय 
सिंहपुरुष :- सिंह के समान वीर है जो पुरुष 
विद्युद्गति :- विद्युत् के सामान तीव्र है जो गति 
द. उत्तरपद उपमान :- इन उदाहरणों में उत्तरपद (दूसरा) पद उपमान होता है। 
नयनकमल :- नयन रुपी कमल 
मुखारविंद :- मुख रुपी अरविन्द 
पादपद्म :- पाद (चरण) रुपी पद्म (कमल)
करकमल :- कर (हाथ) रुपी कमल 
अधरपल्लव :- अधर (होंठ) रुपी पल्लव 
पुरुषसिंह :- पुरुष रुपी सिंह 
नरभुजंग :- नर रुपी भुजंग (सर्प)
भवसागर :- भव (संसार) रुपी सागर 
हृदयसिंधु :- हृदय रुपी सिंधु 
मुखमयंक :- मुख रुपी मयंक (चंद्र)
य. उभयपद विशेषण :- इन उदाहरणों में दोनों ही पद विशेषण होते है, कोई पद विशेष्य नहीं होता हैं। 
श्वेतश्याम :- जो श्वेत है वो श्याम भी है 
नीलपीत :- जो नीला है वो पीला भी है 
नीललोहित :- जो नीला है वो लोहित (लाल) भी है। 
हरितसघन :- जो हरा है वो सघन (घना) भी है 
हराभरा :- जो हरा है वो भरा भी है 
जीर्णशीर्ण :- जीर्ण है वो शीर्ण भी है 
मोटाताजा :- जो मोटा है वो ताजा भी है 
शीतोष्ण :- जो शीट है वो ऊष्ण भी है 
र. रूपक पद :- कुछ उदहारण ऐसे भी होते है, जिनमें कोई भी पद विशेषण या उपमान नहीं होता है, किन्तु
फिर भी वे पद कर्मधारय समास के उदाहरणों में गिने जाते हैं, क्योंकि ऐसे
उदाहरणों में दोनों ही पद एक-दूसरे के विशेषक बन जाते हैं।
विद्याधन :- विद्या रुपी धन 
तपोधन :- तप रुपी धन 
ज्ञानराशि :- ज्ञान रुपी राशि 
बुद्धिबल :- बुद्धि रुपी बल 
पुत्ररत्न :- पुत्र रुपी रत्न 
स्त्रीरत्न :- स्त्री रुपी रत्न 
भावभूमि :-  भाव रुपी भूमि 
कीर्तिपताका :- कीर्ति रुपी पताका 
मनमंदिर :- मन रुपी मंदिर 
श्रद्धासुमन :- श्रद्धा रुपी सुमन 

4. द्विगु समास  

       जहाँ एक पद संख्यावाचक विशेषण और शेष पद कोई संज्ञा हो वहाँ द्विगु समास होता है। 
(विशेष :- इस समास में प्रयुक्त संख्या समुदायवाचक होनी चाहिए, किसी एक का लक्षण निर्धारक नहीं होनी चाहिए। जैसे 'त्रिगुण' शब्द में प्रयुक्त संख्या 'त्रि (तीन)' साथ के शब्द 'गुण' के समुदाय का बोध करा रहा है, जबकि 'त्रिनेत्र' में यही संख्या 'नेत्र' का लक्षण निर्धारित करते हुए अन्य अर्थ (शिव) की ओर संकेत करता है, अतः ऐसे शब्द इस समास के उदाहरणों में नहीं गिने जाते हैं।
सामान्यतः एक की संख्या का प्रयोग भी इस समास में नहीं होता है।)
दुपहर :- दो पहरों का समाहार 
दोराहा :- दो रास्तों पर स्थित 
त्रिकाल :- तीन कालों का समाहार 
त्रिभुवन :- तीन भुवनों का समाहार 
तिमाहा :- तीन महीनों का समाहार 
तिकोना :- तीन कोणों का समाहार 
चतुर्गुण :- चार गुणों का समाहार 
चतुर्मुख :- चार मुखों का समाहार 
चतुर्वेद :- चार वेदों का समाहार 
चौराहा :- चार रास्तों का समाहार 
चौबारा :- चार बारियों का समाहार 
चौमासा :- चार महीनों का समाहार 
चतुष्कोण :- चार कोणों का समाहार 
चतुश्चरण :- चार चरणों का समाहार 
षट्कोण :- छह कोणों का समाहार 
षड्गुण :- छह गुणों का समाहार 
षडानन :- छह आननों (मुखों) का समाहार 
षड्यंत्र :- छह यंत्रों का समाहार 
षण्मास/छमाहा :- छह महीनों का समाहार 
सप्तसिंधु :- सात समुद्रों का समाहार 
सप्तवर्ण :- सात वर्णों (रंगों) का समाहार 
सप्ताह :- सात दिनों का समाहार 
अष्टसिद्धि :-  आठ सिद्धियों का समाहार 
अष्टधातु :- आठ धातुओं का समाहार 
अष्टकोण :- आठ कोनों का समाहार 
अष्टांग :- आठ अंगों का समाहार 
अठन्नी :- आठ  आनों का समाहार 
नवरस :- नौ रसों का समाहार 
नवनिधि :- नौ निधियों का समाहार 
नवधातु :- नौ धातुओं का समाहार 
नवाह्न :- नौ दिनों का समाहार 
नवधाभक्ति :- नौ प्रकार की भक्तियों का समाहार 
नवग्रह :- नौ ग्रहों का समाहार 
दशाब्दी :- देश वर्षों का समाहार 
शताब्दी :- सौ वर्षों का समाहार 
सहस्त्राब्दी :- सहस्त्र वर्षों का समाहार 
संपादकद्वय :- दो सम्पादकों का समाहार 
कालत्रय :- तीन कालों का समाहार 
वचनत्रय :- तीन वचनों का समाहार 

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vachya (वाच्य)

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