Tuesday, May 19, 2020

1. varna vichar

नमस्कार मित्रों,
       आज मैंने हिंदी विषय के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय 'वर्ण विचार' का पोस्ट तैयार किया है, वैसे तो व्याकरण के इस अध्याय के विस्तार पर तो विद्वानों के लिखे भाष्य तक उपलब्ध हो जाते है, जिनमें से परीक्षोपयोगी तथ्यों को निकालने में विद्यार्थियों को लम्बे समय के साथ कठोर श्रम भी करना पड़ता है। 
      विगत काफी वर्षों के प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों का अध्ययन करने के उपरांत जो उपयोगी तथ्य लगे उन्हें ही मैंने इस अध्याय में संक्षिप्त रूप से संकलित करने का एक प्रयास किया है। छात्र इन्हें जानें और लाभ उठायें।
अध्याय - 1
वर्ण विचार 
वर्ण :- भाषा के लिपिबद्ध रूप में सूक्ष्मतम व अविभज्य इकाई को वर्ण कहते हैं। 
भेद :- (अ) योगवाह वर्ण तथा (ब) अयोगवाह वर्ण
(अ) योगवाह वर्ण :- 'योग' से तात्पर्य है 'जोड़ना' और 'वाह' से तात्पर्य है 'वाहित होना (भाषा में प्रयुक्त होना)'। अर्थात जो वर्ण परस्पर जुड़कर भाषा में प्रयुक्त होते हैं उन्हें योगवाह वर्ण कहते हैं।
            ये पुनः दो प्रकार के होते हैं - (क) स्वर वर्ण तथा (ख) व्यंजन वर्ण 
(क) स्वर वर्ण :- जिन वर्णों का उच्चारण मुख विवर से स्वतंत्र (निर्बाध) रूप से हो उन्हें स्वर कहते हैं। 
भेद :- १. हृस्व स्वर तथा २. दीर्घ स्वर
१. हृस्व स्वर :- जिनका उच्चारण ध्वनि के एक ताल के समय में हो उन्हें हृस्व स्वर कहते हैं। हिंदी व्याकरण में चार हृस्व स्वर होते हैं, अ, इ, उ तथा ऋ। 
२. दीर्घ स्वर :- जिनका उच्चारण ध्वनि के दो ताल के समय में हो उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। हिंदी व्याकरण में सात हृस्व स्वर होते हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ तथा औ। 
(ख) व्यंजन वर्ण :- जिन वर्णों का उच्चारण मुख विवर से स्वतंत्र (निर्बाध) रूप से न हो कर भीतर के किसी अंग से बाधित होते हुए स्वरों की सहायता से हो उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं।
        इन्हें पुनः तीन भागों में विभाजित किया गया है, १. स्पर्श व्यंजन, २. अन्तःस्थ व्यंजन तथा ३. ऊष्म व्यंजन। 
१. स्पर्श व्यंजन :- ये वर्ण मुख विवर के किसी अंग को छूते हुए उच्चारित होते हैं। इनकी संख्या पच्चीस होती है, यथा :- क, ख, ग, घ, ङ 
           च, छ, ज, झ, ञ 
           ट, ठ,  ड,  ढ़,  ण 
           त, थ,  द, ध,  न 
           प, फ, ब,  भ, म 
२. अन्तःस्थ व्यंजन :- इन वर्णों का उच्चारण मुख विवर के किसी अंग से आंशिक बाधित होते हुए उच्चारित हो उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन वर्ण कहे हैं। इनका उच्चारण स्वरवत् होता है, अतः इन्हें अर्द्ध स्वर भी कहते हैं। इनकी संख्या चार होती है, य, र, ल तथा व। 
३. ऊष्म व्यंजन :- इन वर्णों का उच्चारण मुख विवर में तीव्र घर्षण के साथ होता है, अतः इन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या चार होती है, श, ष, स तथा ह। 
(ब) अयोगवाह वर्ण :- जो किसी व्यंजन वर्ण से सीधे योग न करके किसी स्वर के द्वारा व्यंजन से योग करते हैं तथा भाषा निर्माण के मूल हो कर उसके सहायक घटक होते हैं उन्हें अयोगवाह वर्ण कहते हैं।
अनुस्वार  विसर्ग ही अयोगवाह वर्ण होते हैं। 
प्रयत्न 
परिभाषा :- किसी वर्ण या ध्वनि के उच्चारण की चेष्टा में श्वास नलिका में स्थित वायु के अंश भार को रोक कर उसे स्वर तंत्रिकाओं से प्रवाहित करने में लगने वाले बल विशेष को ही प्रयत्न कहते हैं। 
ये दो प्रकार के होते हैं, १. आभ्यंतर प्रयत्न और २. बाह्यांतर प्रयत्न। 
(अ) आभ्यंतर प्रयत्न :- मुख विवर के भीतर लगने वाले प्रयत्न को आभ्यंतर प्रयत्न कहते हैं।  ये पांच प्रकार के होते हैं, १. स्पृष्ट, २. ईषत् स्पृष्ट, ३. विवृत ४. ईषत् विवृत तथा ५, संवृत।
१. स्पृष्ट :- स्पर्श व्यंजनों में ही स्पृष्ट प्रयत्न होता है। 
२. ईषत् स्पृष्ट :- अंतःस्थ व्यंजनों में ही ईषत् स्पृष्ट प्रयत्न होता है।
३. विवृत :- स्वर वर्णों में लगने वाले प्रयत्न को विवृत कहते हैं। 
४. ईषत् विवृत :- ऊष्म व्यंजनों में विवृत प्रयत्न होता है।
५. संवृत :- 'अ' ध्वनि के उच्चारण प्रयत्न को ही संवृत प्रत्न कहते हैं। 
२. बाह्यांतर प्रयत्न :- किसी ध्वनि के उच्चारण की चेष्टा में मुख विवर के अतिरिक्त लगने वाले प्रयत्न  बल को ही बाह्यांतर प्रयत्न कहते हैं। ये ग्यारह प्रकार के होते हैं, १. उदात्त, २. अनुदात्त, ३. स्वरित, ४. अल्पप्राण, ५. महाप्राण, ६. अघोष, ७. सघोष, ८. संवार, ९. विवार, १०. नाद और ११. श्वास। 
१. अल्पप्राण वर्ण :- प्रत्येक वर्ग के प्रथम, तृतीय, और पंचम वर्ण, अंतःस्थ वर्ण, स्वर वर्ण तथा उत्क्षिप्त व्यंजन (ड़) आदि।
२. महाप्राण वर्ण :- प्रत्येक वर्ग के द्वितीय, चतुर्थ, ऊष्म और उत्क्षिप्त व्यंजन (ढ़) आदि।
३. अघोष :- प्रत्येक वर्ग के प्रथम, द्वितीय, और सत्व वर्ण आदि।
४. सघोष :- प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ, पंचम, अंतःस्थ, ह और सभी स्वर वर्ण आदि।
(नोट :- अन्य का विवरण यहाँ इतना अपेक्षित नहीं है।)
उच्चारण स्थान 
1. कंठ्य वर्ण :- अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ, ह, ः (विसर्ग)
2. तालव्य वर्ण :- इ, ई, च, छ, ज, झ, ञ, य, श,
3. मूर्धन्य वर्ण :- ऋ, ट, ठ,  ड,  ढ़,  ण, र, ष, 
4. दन्त्य वर्ण :- त, थ, द, ध, न, ल, स 
5. ओष्ठ्य वर्ण :- उ, ऊ, प, फ, ब,  भ, म
6. नासिक्य वर्ण :- ङ, ञ, ण, न, म,
7. वर्त्स्य वर्ण :- न्ह, ल्ह, ल, ज़, स
8. उत्क्षिप्त वर्ण :- ड़, ढ़
9. कंठतालव्य वर्ण :- ए तथा  ऐ,
10. कण्ठोष्ठ्य वर्ण :- ओ तथा औ
11. दन्तोष्ठ्य :- व
12. पार्श्विक :- फ़, ल, लृ, ळ
13. लुण्ठित :- र (इसे प्रकम्पित व् तड़नजात वर्ण भी कहते हैं।)
14. काकल्य :- ह और ः (विसर्ग) (इसे कोमलतालव्य, अलिजिह्व्य वर्ण भी कहते हैं।)

(आपकी मांग और हित को ध्यान में रखते हुए शीघ्र ही अध्यायवार वीडियो भी मैं सम्बद्ध अध्याय के साथ ही पोस्ट कर दूंगा जिससे आपकी कई समस्याओं का समाधान हो जायेगा।)


(मेरे परम मित्र, प्रसिद्ध शिक्षा मनोविज्ञान विशेषज्ञ, व कृतिका पब्लिकेशन के प्रकाशक डॉ. अनिल सिखवाल सर की अनुपम कृति इस पुस्तक को आप पढ़ें और REET, शिक्षक ग्रेड II, और व्याख्याता भर्ती परीक्षा निश्चित सफलता प्राप्त करें। मेरा विश्वास है की ये पुस्तक आपके लिए एक श्रेष्ठ मार्गदर्शक सिद्ध होगी।)

11 comments:

  1. Super sir.Its very helpful for students

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  2. हिंदी भाषा के प्रख्यात विशेषज्ञ मेरे परम मित्र बन्धु बहुत-बहुत आभार

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  3. बहुत अच्छा सर् जी

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  4. सर जी बहुत अच्छा super aapki class ko miss kr rha tha
    Bhut acha laga sir

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  5. धन्यवाद गुरु जी इतना सहयोग करने के लिए🙏

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  6. वैसे तो मै आपसे पढ़ा हुआ हूं लेकिन फिर भी आपने हमारे ज्ञान को और बढ़ाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं आपका बहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव

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