Sunday, May 31, 2020

7. Sarvnaam

नमस्कार मित्रों,
          आज हम पद परिचय खंड के दुसरे अध्याय 'सर्वनाम' के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। मित्रों अगर आपने अभी इस ब्लॉग को Follow नहीं किया है, तो जल्दी कर लें। ये प्रतियोगी परीक्षाओं में आपकी बहुत मदद करने वाला है।

अध्याय - 7
सर्वनाम 
        मित्रों, सर्वनाम शब्द दो शब्दों 'सर्व' (सबसे) 'नाम' (संज्ञा) से मिलकर बना है। जिसका तात्पर्य है किसी भी नाम के साथ या उनके स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द। 
परिभाषा :- जो शब्द किसी संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते है, उन्हें सर्वनाम कहते हैं। 
भेद :- सर्वनाम शब्दों के छह भेद होते हैं - 
(1) पुरुषवाचक सर्वनाम 
(2) निश्चयवाचक सर्वनाम 
(3) अनिश्चयवाचक सर्वनाम 
(4) निजवाचक सर्वनाम 
(5) प्रश्नवाचक सर्वनाम और 
(6) संबंधवाचक सर्वनाम।
(1) पुरुषवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम शब्द स्त्रीलिंग व पुल्लिंग दोनों प्रकार के शब्दों के लिया सामान रूप से प्रयुक्त हो उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
(ये सर्वनाम हमेशा कर्ता के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं।) 
ये पुनः तीन (३) प्रकार के होते हैं - 
(अ) प्रथम/अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम 
(ब) मध्यमपुरुष वाचक सर्वनाम और 
(स) उत्तमपुरुषवाचक सर्वनाम 

(अ) प्रथम/अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम :- किसी अन्य कर्ता हेतु प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम शब्द को ही प्रथम/अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। 
जैसे :- वह, वे यह, ये, वो, इस, उस, इन, उन, (इन सर्वनाम शब्दों के साथ
सभी कारक चिह्न प्रयुक्त हो सकते हैं।)
उदाहरण :-
  • वह घर जा रहा है। 
  • वे मेरे मित्र हैं। 
  • यह तो अभी सो रहा है। 
  • ये पास जाने पर उड़ जायेंगे। 
  • इसने आज मेरी कमीज पहनी है। 
  • उसको/उसे कल बाजार में देखा था। 
  • इनसे पहाड़ पर नहीं चढ़ा जाएगा। 
  • उनके लिए भी आज भोजन की व्यवस्था कर देना। 
(ब) मध्यमपुरुष वाचक सर्वनाम :- श्रोता के लिए प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम शब्दों को मध्यमपुरुष वाचक सर्वनाम कहते हैं। 
जैसे :- तू, तुम, आप (इन सर्वनाम शब्दों के साथ सभी कारक चिह्न प्रयुक्त हो सकते हैं।)
उदाहरण :- 
  • तू चुप रह। (अशिष्टतार्थ )
  • तू तो मेरा प्यारा बेटा है। (घनिष्टतार्थ)
  • तू तो निरा गधा ही बना रहेगा। (हीनतार्थ)
  • तुम सब जानते हो। (सामान्य शिष्टतार्थ)
  • आप तो हमारे लिए पितृतुल्य हैं। (विशिष्टतार्थ)
  • तेरा/तुम्हारा/आपका नाम क्या है। 
  • तुझे/तुम्हें/आपको यहाँ सब जानते हैं। 
  • तुझसे/तुमसे/आपसे सब जलते हैं। 
(स) उत्तमपुरुषवाचक सर्वनाम :- वक्ता के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्दों को उत्तमपुरुष वाचक सर्वनाम कहते हैं। 
जैसे :- मैं, हम, (इन सर्वनाम शब्दों के साथ सभी संबंध कारक को छोड़ कर 
शेष सभी कारक चिह्न प्रयुक्त हो सकते हैं।)
उदाहरण :- 
  • मैं अभी पढ़ना चाहता हूँ। 
  • हम सब एक हैं। 
  • मैंने कल एक सपना देखा। 
  • हमें नियमित रूप से समाचार देखना चाहिए। 
  • मुझसे ये बात छिपी नहीं है। 
(2) निश्चयवाचक सर्वनाम :- जो शब्द किसी निश्चयता को बताने हेतु संज्ञा के आलावा किन्हीं अन्य शब्दों से पूर्व प्रयुक्त होते हैं, उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे :- यह, ये, वह, वे, वो, इस, इन, उस, उन (इन सर्वनाम शब्दों के साथ कारक चिह्न नहीं 
जुड़ते और न ही कभी कर्ता के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
  • वह एक दिन चला जायेगा।
  • यह अब कुछ भी उपयोग में आने योग्य नहीं है। 
  • इस रोचक पुस्तक को बार-बार पढ़ने का मन करता है। 
  • उस फिसड्डी से कोई कार्य ठीक से नहीं होता। 
(ध्यान रहे संज्ञा से पूर्व प्रयुक्त सर्वनाम 'संकेतवाचक/सार्वनामिक विशेषण' कहलाते हैं।)

(3) अनिश्चयवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम शब्द किसी अनिश्चयता का बोध करते हैं, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। 
जैसे :- कोई, कुछ, किसी,
  • उस जगह कोई आता-जाता रहता है। 
  • गगन जरूर हमसे कुछ छिपा रहा है। 
  • परिश्रम करने वाले किसी दिन अवश्य सफल होते हैं। 
  • हो न हो उससे कोई गलती हुई है। 
  • दाल में कुछ काला है। 
  • बाहर कोई तुझे आवाज दे रहा है। 
(4) निजवाचक सर्वनाम :- किसी कर्म अथवा क्रिया को स्वयं कर्ता पर ही अवलम्बित करने हेतु जिन सर्वनाम शब्दों को प्रयुक्त किया जाये उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं। 
जैसे :- आप, अपने आप, अपना, स्वयं, खुद, निज, स्व, स्वतः, मेरा, हमारा,
  • अपना काम आप करो। 
  • रमन अपने कपड़े खुद धोता है। 
  • सभी सिपाही अपना मोर्चा संभाल लें। 
  • राजा निज कक्ष में प्रवेश करता है। 
  • भारत 1947 ई. में स्वतंत्र हुआ।  
  • धीरे-धीरे वह स्वतः संभल जायेगा। 

(5) प्रश्नवाचक सर्वनाम :- जो शब्द किसी शंका या जिज्ञासा का बोध करने हेतु किसी संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त हो उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। 
(विशेष :- 1. इन सर्वनाम शब्दों से निर्मित वाक्यों के अंत में प्रश्नवाचक चिह्न प्रयुक्त होता है। 
2. वाक्य में किसी वस्तु, तथ्य या घटना के विषय में शंका या जिज्ञासा का भाव अवश्य होना चाहिए।)
उदाहरण :- 
  • 1. वस्तु/घटना (क्या) :- तुम क्या लाये ? वहाँ क्या हुआ ?
  • 2. समय (कब) :- वे घर कब आएंगे ?
  • 3. स्थान (कहाँ) :- आज पिताजी जल्दी सुबह ही कहाँ चले गए ?
  • 4. कारण (क्यों) :- आज तुमने आने में देर क्यों कर दी ?
  • 5. विधि/प्रकार (कैसे) :- इस कार्य को कैसे किया जाये ?
  • 6. परिमाण (कितना) :- उसके पास कितनी ज़मीन है ?
  • 7. चयन (कौनसा) :- तूने कौनसा घरोंदा बनाया ?
  • 8. प्राणी (कौन) :- उधर कौन गया ?
  • 9. कर्ता (किसने) :- रास्ता साफ किसने किया ?
  • 10. कर्म (किसे/किसको) :- अपनी पुस्तक तुमने किसको दी थी ?
  • 11. करण (किससे/किसके द्वारा) :- वहाँ तुम किससे मिले ?
  • 12. सम्प्रदान (किसलिए/किस के लिए) :- आज ये उपहार किसके लिए लाये हो ?
  • 13. अपादान (किससे/कहाँ से (पृथक होने के अर्थ में) ) :- गाड़ी अभी कहाँ से निकली है ?
  • 14. संबंध (किसका/की/के) :- सामने खड़ी ये गाड़ी किसकी है ?
  • 15. अधिकरण (किसमें/किस पर) :- ये पानी किसमें भरूँ ?

(6) संबंधवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम किन्हीं दो शब्दों या वाक्यांशों के मध्य संबंध दर्शाने हेतु प्रयुक्त हो उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं ?
(विशेष :- 1. ये सर्वनाम हमेशा युग्म के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं। 2. इनमें से जिस सर्वनाम शब्द से वाक्य शुरू हो उसे मुख्य संबंधवाचक सर्वनाम तथा वाक्य के मध्य में प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम को सहसंबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं।)
जैसे :- जो-सो/वो, ज्यों-त्यों, जैसा-वैसा, ऐसा-वैसा, जिसका-उसका, जितना-उतना,
  • जो करेगा सो/वो भरेगा। 
  • ज्यों आगे बढ़ोगे त्यों ही गंतव्य निकट आएगा। 
  • जिसकी लाठी, उसकी भैंस। 
  • जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे। 
          मित्रों, सर्वनाम अध्याय समाप्त हो चुका है। आशा करता हूँ ये आपके लिए निश्चय ही उपयोगी होगा। किसी प्रकार के सुझाव या प्रश्न हेतु Comment अवश्य करें । अगला पोस्ट 'विशेषण' के बारे में होगा। इन्तज़ार करें... ब्लॉग को अपने मित्रों-परिचितों में शेयर करें और Follow करें, ताकि आगामी पोस्ट की सबसे पहले सूचना आपको मिले।


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Saturday, May 30, 2020

Sangya (Padarth Vachak, Samooh Vachak aur Bhavavachak Sangya)


नमस्कार मित्रों, कल हमने संज्ञा अध्याय के सामान्य परिचय के साथ व्यक्तिवाचक और जातिवाचक संज्ञा के बारे में पढ़ था, आज इसी अध्याय को आगे बढ़ाते हुए जातिवाचक संज्ञा के उपभेदों पदार्थवाचक व समूहवाचक संज्ञा तथा भाववाचक संज्ञा के बारे में पढ़ेंगे।  तो आइये शुरू करते है आज का टॉपिक - - - 
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(क) पदार्थवाचक/द्रव्यवाचक संज्ञा :- जिन शब्दों से किसी पदार्थ या द्रव्य आदि का बोध हो उन्हें पदार्थ या द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। 
(क) सभी धात्विक खनिजों के नाम :- सोना, चाँदी, तांबा, पीतल, कांस्य, लोहा, यूरेनियम, केडमियम, प्लेटिनम,
  • यूरेनियम आण्विक ऊर्जा में प्रयुक्त होने वाली धातु है। 
(ख) सभी अधात्विक खनिजों के नाम :- सिलिका, कोयला, अभ्रक, जिप्सम, वोलस्टोनाइट, एस्बेस्टॉस,
  • जिप्सम राजस्थान में सर्वाधिक पाया जाने वाला अधात्विक खनिज है। 
(ग) सभी रासायनिक रंगों के नाम :- लाल, पीला, नीला, सफ़ेद, हरा, बैंगनी, गुलाबी, काला,
  • इस चादर नीले रंग से रंगवाओ। 
(घ) सभी मादक पदार्थों के नाम :- अफीम, गांजा, चरस, तम्बाकू, अमल, कॉफेन, निकोटीन, एलकोहॉल,
  • तम्बाकू चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 
(ङ) सभी पेय व खाद्य पदार्थों :- पानी, दूध, दही, छाछ, लस्सी, मट्ठा, शरबत, रस, मदिरा, हलवा, खीर, पनीर, मक्खन, घी, तेल, रोटी, दाल, तरकारी, 
  • छाछ एक ऐसा शीतल पेय है, जो गर्मियों में अमृत तुल्य है। 
(च)  सभी रसायनों के नाम :- पेरासिटामॉल, पेनिसिलिन, पोटेशियम परमेंगनेंट, गंधक, सल्फर,
  • गंधक कृषि में प्रयुक्त होने वाला कीटरोधी रसायन है। 
(छ) सभी गैसों के नाम :- ऑक्सीजन, कार्बन-डाई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन,
  • ऑक्सीजन ही प्राणियों की जीवनदायिनी गैस है। 
(ख) समूहवाचक/समुदायवाचक संज्ञा :- जिन शब्दों से किसी समूह या समुदाय आदि का बोध हो उन्हें समूहवाचक या समुदायवाचक संज्ञा कहते हैं। 
        परिवार, समाज, समुदाय, कक्षा, भीड़, रैली, जुलूस, जलसा, आंदोलन, क्रांति, मेला, रेवड़, मवेशी, गुच्छा, जत्था, झुण्ड, वृन्द, कुंज, सेना, दल, फ़ौज, पंक्ति, प्रजा, जनता, लोग, जन, वृन्द, गण, 
  • शिक्षक कक्षा पढ़ा रहे हैं। 
  • सेना ही बाहरी आक्रमणों से प्रजा की रक्षा करती है। 
  • अमरनाथ यात्रियों का पहला जत्था रवाना हो चुका है। 
  • पशु भी झुण्ड में रहना पसंद करते हैं। 
  • विद्यार्थी एक पंक्ति में खड़े हो गए। 
(3) भाववाचक संज्ञा :- जिन शब्दों से किसी संवेग, संवेदना, अनुभूति आदि का बोध हो उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं। 
          हर्ष, विषाद, गर्व, ग्लानि, आह, सुख, दुःख, खेद, क्षमा, विश्वास, आस्था, कृपा, क्रोध, आवेग, मोह, प्रेम, घृणा, त्याग, हिम्मत, साहस, जोश, उत्साह, रोष, भूख, प्यास, पीड़ा, वेदना, चाह, तृष्णा, तृप्ति, वासना, कपट, नींद, भय इत्यादि ऐसी सभी संज्ञाएँ जिन्हें न तो देखा जाये और न ही छुआ जाये केवल महसूस ही किया जाये उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं।
  • वह तुम्हारी बहुत चिंता करती है। 
  • जवानों  जोश देखा गया। 
  • मर्यादा ही मनुष्यत्व का गहना है। 
  • भूख प्राणी को उत्तेजित कर देती है। 
  • हमारी ईश्वर में आस्था है। 
अन्य शब्दों से बनने वाली भाववाचक संज्ञाएँ 
राम - रामत्व 
कृष्ण - कृष्णत्व 
बच्चा - बचपन 
जवान - जवानी 
पुरुष - पुरुषत्व 
स्वामी - स्वामित्व 
पिता - पितृत्व 
माता - मातृत्व 
गुरु - गुरुत्व 
भाई - भाईचारा 
भ्राता - भ्रातृत्व 
सुन्दर - सौंदर्य 
कायर - कायरता 
विरोध - विरोधी 
हल्का - हल्कापन 
भारी - भारीपन 
वीर - वीरता 
सफल - सफलता 
मीठा - मीठापन, मिठास 
गरीब - गरीबी 
काला - कालापन, कालिख, कालिमा,
ममता - ममत्व 
निजी - निजत्व 
अपना - अपनापन, अपनत्व, अपनापा,
स्व - स्वत्व 
अहम् - अहंकार  

ध्यातव्य बिंदु :- 
1. किसी लाक्षणिक अर्थ में व्यक्तिवाचक संज्ञा भी जातिवाचक संज्ञा मानी जाती है। 
वह  समाज का सबसे बड़ा 'जयचंद' है। 
          इस वाक्य में जयचंद शब्द व्यक्तिवाचक होते हुए भी लाक्षणिक अर्थ (चुगलखोर) के पक्ष में आने के कारण जातिवाचक संज्ञा है। 
2. किसी व्यक्तिवाचक संज्ञा का बहुवचन रूपांतरण होने पर भी वह जातिवाचक संज्ञा बन जाती है। 
इस मंदिर का जीर्णोद्धार 'भामाशाहों' के सहयोग से हुआ है। 
          इस कथन में भामाशाह शब्द व्यक्तिवाचक होते हुए भी बहुवचन में प्रयुक्त होने के कारण जातिवाचक संज्ञा ही माना जायेगा। 
3. किसी जातिवाचक संज्ञा के विशिष्ठ अर्थ में प्रयुक्त होने पर वह व्यक्तिवाचक संज्ञा बन जाती है। 
देश के एकीकरण में 'पटेल' की मुख्य भूमिका थी। 
          इस वाक्य में 'पटेल' शब्द एक जातिवाचक संज्ञा है, लेकिन देश के एकीकरण काल की बात करने पर यह शब्द विशिष्ठ हो कर 'सरदार वल्लभ भाई पटेल' के लिए प्रयुक्त हुआ स्पष्ट होता है, इस कारण यहाँ 'पटेल' शब्द में व्यक्तिवाचक संज्ञा होगी। 
4. किसी भाववाचक संज्ञा का बहुवचन रूपांतरण होने पर उसमे जातिवाचक संज्ञा हो जाती है। 
 अभी वह कई चिंताओं से घिरा है।  या अभी उसे कई चिंताएँ सता रही है। 
          इन वाक्यों में प्रयुक्त मूल शब्द 'चिंता' भाववाचक संज्ञा है, किन्तु 'चिंताओं' या 'चिंताएँ' में बहुवचन होने के कारण अब इन शब्दों में जातिवाचक संज्ञा हो गई है। 
5. वस्तुतः किसी संज्ञा का अपना पूर्वनिर्धारित परिचय नहीं होता है।  उसके प्रयोग की अवस्था ही उसके परिचय का निर्धारण करेगी । 
कमल घर जाता है। 
इस वाक्य में कमल एक व्यक्ति विशेष के नाम हेतु प्रयुक्त होने के कारण निश्चय ही व्यक्तिवाचक संज्ञा है , किन्तु 
तालाब में कमल खिला है। 
इस वाक्य में कमल एक पुष्प विशेष के अर्थ में प्रयुक्त होने के कारण जातिवाचक संज्ञा के रूप में ही स्वीकार किया जायेगा। 
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          मित्रों, संज्ञा अध्याय यहाँ समाप्त हो गया है। अगली पोस्ट में सर्वनाम अध्याय के बारे में जानकारी दी जाएगी। साथियों अगर अब भी आपने ब्लॉग को Fallow नहीं किया है तो कर ले।  ये ब्लॉग पूर्णतः हिंदी विषय को समर्पित है अतः आगामी पोस्ट निश्चय ही आपके लिए बहुत उपयोगी होने वाले हैं ।
            पोस्ट आपको कैसे लगते है, अवश्य बताते रहें और विषयगत शंकाओं व समस्याओं के बारे भी प्रश्न करते रहें। पोस्ट पर अपने मित्रों व परिचितों को भी आमंत्रित करते रहें। 


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Friday, May 29, 2020

6. Sangya (Vyaktivachak aur Jativachak Sangya)

नमस्कार साथियों,
          आज हम हिंदी व्याकरण के एक बहुत महत्त्वपूर्ण खंड 'पद-परिचय' के बारे में समझने का प्रयास करेंगे। वैसे शब्द और पद में मात्रा इतना ही अंतर है की 'शब्द' एक स्वतंत्र इकाई है,  जबकि 'पद' वाक्य में निबद्ध इकाई है। वाक्य में प्रयुक्त होने वाले पद संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, अव्यय आदि होते है तथा काल, वचन, लिंग, पुरुष और कारक इनमें विकार लाते हैं, अव्यय शब्दों में कोई विकार नहीं आता है। इन्हीं में से एक 'संज्ञा' अध्याय के बारे में आज हम अध्ययन करेंगे।
अध्याय - 6.
संज्ञा 
     मित्रों, 'संज्ञा' का शाब्दिक है, नाम। अर्थात् नाम को ही संज्ञा कहते हैं।

परिभाषा :- किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव, जाति, पदार्थ, समूह इत्यादि के नाम को ही संज्ञा कहते हैं।

भेद :- संज्ञा के मुख्य तीन भेद होते हैं -
(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा, 
(2) जातिवाचक संज्ञा और 
(3) भाववाचक संज्ञा।

अन्य भेद :-

(क) पदार्थवाचक/द्रव्यवाचक संज्ञा तथा 
(ख) समूहवाचक/समुदायवाचक संज्ञा। 
        वस्तुतः ये दो भेद जातिवाचक संज्ञा के ही उपभेद हैं।

(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा :- किसी विशिष्ठ व्यक्ति, वस्तु, स्थान इत्यादि के नाम को ही व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।

(क) सभी स्त्री-पुरुषों के नाम :- सुरेश, गोविन्द, विनीता, राधिका, गौरव, नेहा, राजू, 
  • 'तुलसीदास' कृत 'रामचरित मानस' जन-जन के मन मंदिर में प्रतिष्ठित है। 
(ख) सभी धर्मों, पंथों व सम्प्रदायों के नाम :- हिन्दू, इस्लाम, सिक्ख, ईसाई, यहूदी, पारसी, जैन, बौद्ध,
  • सनातन धर्म इस सृष्टि का सबसे प्राचीन धर्म है। 
(ग) सभी धर्मग्रंथों, शास्त्रों व साहित्यों के नाम :- ऋग्वेद, यजुर्वेद, श्रीमद्भगवद्गीता, बाइबिल, आगम, त्रिपिटक,
  • ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीन व महानतम ग्रन्थ है। 
(घ) सभी त्योहारों तथा पर्वों के नाम :- दीपावली, होली, रक्षाबंधन, लोहिड़ी, गुरुपर्व, क्रिसमस, गुड़फ्राइडे, ईद
  • दीपावली प्रकाश, उल्लास, और सम्पन्नता का पर्व है। 
(ङ) सभी ग्रहों व उपग्रहों के नाम :- सूर्य, पृथ्वी, मंगल, शुक्र, शनि, आर्यभट्ट, भास्कर, एडुसेट, PSLV
  • सौर मंडल में पृथ्वी ही एक मात्र ग्रह है, जिस पर जीवन है।
(च) सभी वनों व उद्यानों के नाम :- सुन्दर वन, नैमिषारण्य, दण्डकारयण्य, रामनिवास बाग़, उम्मेद उद्यान,
  • घना पक्षी विहार अभ्यारण्य को पक्षियों का स्वर्ग कहा गया है। 
(छ) सभी धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों के नाम :- अमरनाथ, कैलास मानसरोवर, त्र्यंबकेश्वर, महाकालेश्वर, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा, गिलूण्ड, गणेश्वर, मेहरानगढ़, सोनारगढ़, जूनागढ़, पटवों की हवेली,
  • रणथंभौर दुर्ग को दुर्गों का सिरमौर कहा गया है। 
(ज) पर्वतों, पत्थरों, घाटियों, दर्रों व शिखरों के नाम :- हिमालय, अरावली, विंध्य, सतपुड़ा, जोजीला दर्रा, लाहुल-स्पीति की घाटी, देसूरी नाल, सोमेश्वर नाल, फुलवारी की नाल, भोरठ का पठार, लावा का पठार, आबू का पठार
  • गुरुशिखर राजस्थान की सबसे ऊँची पर्वतीय चोटी है। 
(झ) महासागरों, सागरों, खाड़ियों, नदियों, झीलों व झरनों के नाम :- हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर, अरब  सागर, भूमध्य सागर, कालासागर, बंगाल खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी, आनासागर झील, उम्मेदसागर झील, पिछोला झील, जयसमंद झील, चम्बल, बनास, लूणी, माही, पार्वती, बाण गंगा,
  • माही नदी का जल खम्भात की खाड़ी में गिरता है। 
(ञ) महाद्वीपों, द्वीपों, देशों, राज्यों, क्षेत्रों, शहरों और गाँवों के नाम :- एशिया, यूरोप, अफ्रीका, जापान, श्री लंका, अंडमान-निकोबार, सुमात्रा, जावा, भारत, राजस्थान, जयपुर,
  • भारत एक कृषि प्रधान देश है। 
(ट) सप्ताह के दिनों के नाम :- सोमवार, मंगलवार, Sunday, Monday,
  • वह शनिवार को अपने गांव जायेगा। 
(ठ) सभी महीनों के नाम :- जनवरी, फरवरी, मार्च, पौष, माघ, फाल्गुन,
  • जून-जुलाई माह में राजस्थान में प्रचंड गर्मी होती है। 
(ड) सभी ऋतुओं के नाम :- शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शिशिर, हेमंत, बसंत,
  • पश्चिमी राजस्थान में अधिकांश कृषि वर्षा ऋतु पर ही आश्रित है। 
(ढ) सभी दिशाओं के नाम :- उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य
  • भारत के उत्तर में हिमालय है। 
(2) जातिवाचक संज्ञा :- किसी वस्तु, प्राणी या स्थान इत्यादि के वर्ग या जाति का बोध करने वाले शब्दों को जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
(क) सभी प्राणी वर्गों के नाम :- पशु, पक्षी, कीट, पतंग, पादप, सरीसृप और मनुष्य इत्यादि 
  • भारतीय धर्म-संस्कृतु में कई पशु-पक्षियों को भी जीव रक्षा के उद्देश्य से धार्मिक प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। 
(ख) सभी पशु-पक्षियों के नाम :- गाय, भैंस, बकरी, भेद, घोड़ा, हाथी, शेर, भालू, हिरन, जिराफ, गैंडा,
  • गाय को भारतीय जनमानस में देव तुल्य माना जाता है। 
(ग) सभी कीट-पतंगों के नाम :- चींटी, जूं, जोंक, दीमक, खटमल, इल्ली, बर्र, ततैया, मधुमक्खी, मच्छर,
बिच्छु का काटा बहुत पीड़ादायक होता है। 
(घ) सभी वृक्षों झाड़ियों तथा बेलों के नाम :- वट, पीपल, नीम, केर, झरबेरी, तरबूज की बेल,
  • नीम के फल पकने की ऋतु में कौवे के गले में गांठे पद जाती है। 
(ङ) सभी सरीसृपों व जलचरों के नाम :- मछली, शीप, घोंघा, केकड़ा, ऑक्टोपस, नेवला, सर्प, चूहा, गिरगिट,
  • शंख भी एक समुद्री जीव है। 
(च) सभी फसलों के नाम :- गेंहु, बाजरा, मक्का, ज्वार, जौ, चना, मूंग, तिल, सरसों, अरहर, सोयाबीन,
  • राजस्थान में बाजरा सर्वाधिक खाया जाने वाला खाद्यान्न है। 
(छ) सभी फलों, फूलों, सब्जियों तथा मेवों के नाम :- आम, केला, अंगूर, आलू, टमाटर, मटर, काजू, बादाम, अंजीर, गुलाब, केवड़ा, गुलदाउदी, गुड़हल, कमल, जूही, 
  • रात्रि काल में गुलाब की सुगंध किसी को भी मदमस्त कर देती है। 
(ज) सभी व्यक्तिगत संबंधों के नाम :- माता, पिता, भाई, बहिन, पति, पत्नी, दादा, पोता, मित्र, शत्रु, गुरु, शिष्य,
  • संकट के समय जो हमारा साथ दे वही हमारा सच्चा मित्र है। 
(झ) सभी पदवियों तथा व्यवसायों के नाम :- प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, सांसद, विधायक, पार्षद, सरपंच, न्यायाधीश, पटवारी, प्रधान, आयुक्त, सचिव, व्याख्याता, मजदूर, नौकर, चोर, ठग, व्यापारी ।
  • राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक होता है। 
(ञ) सभी वस्त्रों, आभूषणों तथा सौंदर्य प्रसाधनों के नाम :- ओढ़ना, साड़ी, पतलून, कमीज, कुरता, पाजामा, चूड़ी, कंगन, बाजूबंद, नथ, 
  • नथ महिलाओं का एक प्राचीन पारम्परिक आभूषण है। 
(ट) सभी शारीरिक अंगों के नाम :- आँख, नाक, कान, जीभ, शिरा, धमनी, हृदय, यकृत, फेफड़ा, दाँत, गुर्दा, चमड़ी,
  • नाक मनुष्य की प्रतिष्ठा  का भी सूचक है। 
(ठ) सभी फर्नीचर के नाम :- कुर्सी, चारपाई, संदूक, अलमारी, बाजोट, पलंग, सिंगारमेज, सोफा, दराज, 
  • किसान थक कर खटिया पर लेट गया। 
(ड) सभी औजारों, उपकरणों तथा हथियारों के नाम :- कुल्हाड़ी, खुरपा, कुदाल, फावड़ा, पेजकस, पंखा, रेफ्रिजरेटर, टेलीविजन, बल्ब, ज्यूसर, बंदूक, तोप, मिसाइल, टैंक, 
  • टेलीविजन सार्वजानिक संचार का सर्वोत्तम साधन है। 
            मित्रों, आज के इस पोस्ट में संज्ञा अध्याय के 'व्यक्तिवाचक संज्ञा' व ' जातिवाचक संज्ञा' के बारे में बताया गया है। अगले पोस्ट में आगे के बारे में जानकारी दूंगा।  मित्रों अभी तक यदि अपने ब्लॉग को Follow नहीं किया है, तो जल्दी से कर लें, ताकि आगे के Updates आपको सबसे पहले प्राप्त हो। किसी भी प्रकार के सुझाव या हिंदी विषयगत समाधान  हेतु अवश्य लिखें। 

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Thursday, May 28, 2020

Pratyay (Taddhit Pratyay)

नमस्कार मित्रों 
कल हमने 'प्रत्यय' अध्याय के 'कृदंत प्रत्यय' परचर्चा की थी, आज उसके आगे के भाग 'तद्धित प्रत्यय' पर चर्चा करेंगे। साथियों मेरा ये प्रयास आपको कैसा लगा Comment करके अवश्य बताएँ और प्रतिदिन के Updates तुरंत प्राप्त करने हेतु Blog को Follow अवश्य कर लें। 
(ब) तद्धित प्रत्यय
        जो शब्दांश किसी धातु/क्रियापद के अतिरिक्त किसी अन्य पद (जैसे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, अव्यय इत्यादि) जुड़कर उसके अर्थ में विशेषता या विस्तार उत्पन्न करते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं।
(क) कर्तृ वाचक तद्धित प्रत्यय :- 
1. आर :- चमार, लोहार, सुथार, गंवार, 
2. आड़ी :- अगाड़ी, पिछड़ी 
3. इया :- ढोलकिया, आढ़तिया, मुखिया, दुखिया, निमोछिया, दिवालिया
4. ई :- तेली, तम्बोली, अनुरागी, वैरागी, गृहस्थी, त्यागी,
5. उवा :- मछुवा, बचवा, पछुवा 
6. एरा :- घनेरा, घसेरा, ठठेरा,
7. कर :- दिनकर, रजनीकर, निशाकर, प्रभाकर, सुधाकर, 
8. कार/कारी :- आक्रमणकारी, कलाकारी, साहित्यकार, चित्रकार, कुम्भकार, पत्रकार, आविष्कारी, आक्रमणकारी,
9. चर :- निशाचर, जलचर, नभचर, गोचर, 
10. जीवी :- चिरजीवी, दीर्घजीवी, मसिजीवी, बुद्धिजीवी, सुरजीवी 
11. द/दायी :- जलद, सुखद, दुखद, धनद, ज्ञानद, मानद, पीड़ादायी, सुखदायी, कष्टदायी, उत्तरदायी 
12. धर :- जलधर, विद्याधर, विषधर, गिरिधर, धनुर्धर, गदाधर धरणीधर, 
13. धि :- जलधि, नीरधि, परिधि, 
14. मार :- चिड़ीमार, छापामार, झपट्टामार, बटमार, मक्खीमार 
15. विद् :- इतिहासविद्, कलाविद्, विज्ञानविद्, शस्त्रविद्, 
16. वेत्ता :- विधिवेत्ता, संगीतवेत्ता, प्राच्यवेत्ता, सांख्यवेत्ता, न्यायवेत्ता,
17. वान :- गाड़ीवान, दाढ़ीवान, ज्ञानवान, कोचवान, दयावान 
18. वाहा :- हलवाहा, चरवाहा, फिरवाहा, फिरवाहा, 
19. हर/हर्ता :- कष्टहर, विघ्नहर, पीड़ाहर, बाधाहर्ता, दुखहर्ता 
20. हारा :- लक्कड़हारा, पनहारा 

(ख) सम्बन्ध वाचक तद्धित प्रत्यय :- 
1. आल :- ससुराल, ननिहाल, ददिहाल 
2. एरा :- चचेरा, फुफेरा, ममेरा, मौसेरा, 
3. हर :- पीहर, नैहर,

(ग) क्रिया विशेषण वाचक तद्धित प्रत्यय :- 
1. तः :- अंततः, सामान्यतः, स्वभावतः, समयतः, मूलतः,
2. तया :- सामान्यतया, अन्ततया, विशेषतया, मुख्यतया,
3. त्र :- एकत्र, अन्यत्र, सर्वत्र, 
4. शः :- अक्षरशः, क्रमशः, बहुशः, प्रायशः, 

(घ) विशेषण वाचक तद्धित प्रत्यय :- 
1. आ :- भूखा, प्यासा, ठंडा,
2. आना :- राजपुताना, जनाना, मर्दाना, घराना, पैताना,
3. इक :- रासायनिक, व्यावहारिक, ऐतिहासिक, नैतिक, वैश्विक, भौमिक, लौकिक, भौगोलिक, मौखिक,
4. इष्ट :- स्वादिष्ट, गरिष्ट,
5. इष्ठ :- बलिष्ठ, वरिष्ठ, विशिष्ठ 
6. इत :- खंडित, मंडित, द्रवित, कंटकित, मंडित, कलंकित,
7. इन :- कठिन, मलिन, 
8. ईय :- भारतीय, नारकीय, स्वर्गीय, मानवीय, दानवीय, कारकीय, क्षारीय, जलीय, भवदीय, वायवीय, 
9. ईन :- रंगीन, शौकीन, शालीन, प्राचीन, ग्रामीण, नवीन,
10. ईला :- रंगीला, सजीला, भड़कीला, नखरीला, चटकीला, गर्वीला, बर्फीला,
11. उक :- कामुक, उत्सुक, भिक्षुक, इच्छुक,
12. ऐला :- विषैला, कसैला, 
13. कीय :- नाभिकीय, राजकीय, स्वकीय, परकीय,
14. तन :- पुरातन, नूतन, अद्यतन, अधुनातन,
15. हरा :- इकहरा, दोहरा, तिहरा, 
16. ल :- शीतल, मंगल, मंजुल,
17. ला :- अगला, पिछला, मंझला,
18. स्थ :- कंठस्थ, अधीनस्थ, तटस्थ, कंठस्थ,

(ङ) अपत्य वाचक तद्धित प्रत्यय :- 
1. अ :- राघव, माधव, पांडव, यादव, वासुदेव 
2. अयन :- रामायण, उत्तरायण, पारायण, कौशल्यायन, 
3. इ :- दाशरथि, मारुति, वाल्मीकि, 
4. इनि :- पाणिनि 
5. ई :- कालिंदी, जानकी, वैदर्भी, वैदेही, गांधारी,
6. एय :- कौन्तेय, राधेय, गांगेय, कार्तिकेय, आंजनेय, आतिथेय, मार्कण्डेय, 
7. ज :- अग्रज, अनुज, तोयज, पंकज, आत्मज, पूर्वज, 
8. जा :- अग्रजा, अनुजा, वंशजा, जनकजा, वृषभानुजा, 
9. य :- वात्सल्य, चाणक्य, मौर्य, शांडिल्य, पौलस्त्य, 

(च) ऊनार्थक तद्धित प्रत्यय :- 
1. इका :- पत्रिका, जंत्रिका, तंत्रिका, गुलिका, तूलिका, कलिका,
2. इया :- कुटिया, कुतिया, चुटिया, डिबिया, मुनिया, बिटिया, 
3. ई :- मंडली, टोली, टुकड़ी, पंखुड़ी, आंतड़ी, 
4. उआ/उवा :- बबुआ, ठलुआ, 
5. ओला :- फफोला, बिचौला, मझोला,
6. ड़ा/ड़ी :- पंखुड़ी, दुखड़ा, मुखड़ा, दमड़ी, चमड़ी, चिथड़ा,
7. री :- गठरी, गगरी, छतरी, कोठरी,

(छ) भाव वाचक तद्धित प्रत्यय :- 
1. अ :- गौरव, लाघव, कौशल, सौष्ठव, पौरुष, 
2. अक :- ठंडक, चिकित्सक, आरण्यक, भोजक, विषयक,
3. अत :- रंगत, सांगत, बादशाहत, 
4. आ :- चूरा, छापा, चटाका, धमाका,
5. आई :- चिकनाई, कठिनाई, भलाई, बुराई, पंडिताई, चौड़ाई, लम्बाई,
6. आका :- चटका, धमाका, धड़ाका, 
7. आन :- लम्बान, चौड़ान, नीचान,
8. आपा :- अपनापा, छोटापा, पूजापा, 
9. आयत :- अपणायत, लोकायत, टीकायत, बहुतायत,
10. आस :- उजास, खटास, मिठास,
11. आहट :- चिकनाहट, कड़वाहट, गर्माहट,
12. इकी :- रासायनिकी, व्यावहारिकी, वैकल्पिकी, वार्षिकी, औद्योगिकी, मौखिकी, वार्तिकी, कार्तिकी,
13. इम :- अग्रिम, पश्चिम, आरुणिम, रक्तिम, रूपिम, 
14. इमा :- महिमा, रक्तिमा, मधुरिमा, भंगिमा, पूर्णिमा, लालिमा, नीलिमा, अग्रिमा,
15. ई :- गर्मी, राही, नौकरी, मजदूरी, नमी, 
16. कार :- चीत्कार, दुत्कार, टंकार, धिक्कार, फटकार,
17. त्व :- अपनत्व, निजत्व, घनत्व, सर्वत्व, लघुत्व, गुरुत्व, शिवत्व, रामत्व, पुरुषत्व,
18. ता :- निजता, नीचता, कटुता, मृदुता, चंचलता, पंगुता, निश्चलता, रोचकता, नवीनता, निर्बलता, सुंदरता,
19. तम :- वृहत्तम, लघुतम, गुरुतम, दीर्घतम, निम्नतम, अधिकतम, सर्वोत्तम,
20. तर :- मृदुतर, कटुतर, शीघ्रतर, श्रेष्ठतर, उच्चतर, पटुतर, प्रियतर, गूढतर, उत्तर, 
21. पन :- अपनापन, परायापन, ओछापन, घटियापन, छिछोरापन, लड़कपन, अल्हड़पन, काटूपन,
22. मत्/मान :- शक्तिमत, शक्तिमान, श्रीमत, श्रीमान, बुद्धिमत, बुद्धिमान, 
23. मय :- अन्नमय, जलमय, तेजोमय, 
24. य :- काव्य, गाम्भीर्य, माधुर्य, चातुर्य, नैकट्य, वैशिष्ठ्य, चैत्य, वैधव्य, दौर्बल्य, कौटिल्य, कौमार्य, कार्पण्य,
25. वाद/वादी :- छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, आध्यात्मवादी, साम्यवादी, पूँजीवादी, यथार्थवादी, ब्रह्मवादी,
26. वी :- मनस्वी, मायावी, मेधावी, तपस्वी, तेजस्वी, 
27. श :- कर्कश, रोमश, 
28. शाली :- बलशाली, वैभवशाली, शक्तिशाली, भाग्यशाली, प्रभावशाली, प्रतिभाशाली, 

(ज) स्त्री प्रत्यय प्रत्यय :- 
1. आनी :- देवरानी, जितनी, सेठानी, नौकरानी, ठकुरानी, इन्द्राणी, रुद्राणी,
2. आइन :- चौधराइन, ठकुराइन, हलवाइन, पंडिताइन, नाइन,
3. आ :- सुता, प्रिया, छात्रा, अजा, शिष्या, सुशीला, पूर्वजा, 
4. इका :- शिक्षिका, सेविका, उपचारिका, संरक्षिका, लेखिका, गायिका, 
5. इन :- बाघिन, नागिन, धोबिन, पुजारिन, कसाइन, सुनारिन, कुम्हारिन, मालकिन,
6. इनी :- संगिनी, सुहासिनी, हथिनी, कामिनी, हंसिनी, रक्षिणी, भुजंगिनी, 
7. इया :- कुतिया, चिड़िया, चुहिया, बंदरिया, गुड़िया, 
8. एरी :- चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी, 
9. ओई :- ननदोई, बहनोई,
10. त्री :- नेत्री, अभिनेत्री, कर्त्री, हंत्री, कवयित्री, वक्त्री,
11. नी :- चोरनी, मोरनी, भीलनी, नटनी, भूतनी, प्रेतनी, जादूगरनी, 
12. मती :- श्रीमती, धीमती, बुद्धिमती, शक्तिमती, 
13. वती :- गुणवती, बलवती, वेगवती, भाग्यवती, धनवती, रूपवती, ज्ञानवती,

मेरे प्रिय व अभिन्न मित्र, वरिष्ठ पत्रकार, लब्ध प्रतिष्ठित शिक्षा मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. अनिल सिखवाल 'सर" को पत्रिकारिता के क्षेत्र में कोरोना सेवा योद्धा के रूप में 'जन अधिकार सेना' द्वारा सम्मानित किया गया। 
                              आभार व शुभ कामनाएँ


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Wednesday, May 27, 2020

5. Pratyay (kridant Pratyay)

नमस्कार मित्रों,
        आज हम व्याकरण के 'प्रत्यय' अध्याय के बारे में जानेंगे। ये भी व्याकरण का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है। इसमें हम ये सीखेंगे की किस प्रकार एक शब्द के साथ कोई प्रत्यय जुड़ जाये तो उसके भाव में थोड़ा सा अंतर आ जाता है। वैसे एक ही प्रत्यय विभिन्न शब्दों के साथ जुड़ कर कई प्रकार के भाव प्रगट कर सकता है। जैसे 'नी' प्रत्यय 'कर्म वाचक' भी है और 'करण वाचक' भी है। 'अन' प्रत्यय 'करण वाचक' भी है और 'भाववाचक' भी है। अतः सरल से लगने वाले इस अध्याय का अध्ययन बहुत सूक्ष्मता से करना चाहिए। 
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अध्याय - 5 
प्रत्यय 
        जो शब्दांश किसी शब्द के बाद प्रत्युक्त हो कर उसके अर्थ में विशेषता या विस्तार उत्पन्न करते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
        (मित्रों, यहाँ ये जान लेना आवश्यक है की उपसर्ग किसी शब्द से पहले जुड़ते हैं, और प्रत्यय किसी शब्द के बाद में जुड़ते हैं। उपसर्ग जुड़ने से शब्द का अर्थ परिवर्तित होता है, जबकि प्रत्यय से अर्थ परिवर्तन नहीं होता है।)
भेद :- उपसर्गों के मुख्य दो भेद होते हैं - (अ) कृदन्त उपसर्ग और (ब) तद्धित उपसर्ग। 
(अ) कृदन्त प्रत्यय
        जो शब्दांश किसी धातु/क्रियापद के साथ जुड़कर उसके अर्थ में विशेषता या विस्तार उत्पन्न करते हैं, उन्हें कृदंत प्रत्यय कहते हैं। 
उपभेद :- इसके चार मुख्य भेद होते हैं - (क) कर्तृ वाचक कृदंत (ख) कर्म वाचक कृदंत (ग) करण वाचक कृदंत (घ) भाववाचक कृदंत।
(क) कर्तृ वाचक कृदंत प्रत्यय :- इस प्रत्यय से युक्त शब्दों का अर्थ विस्तार करने पर अंत में 'वाला' जरूर आता है। जैसे घुमक्कड़ - घूमने वाला। 
1. अक :- पाठक, लेखक, नर्तक, गायक, धावक, नायक, वादक, मोचक, 
2. अक्कड़ :- पियक्कड़, घुमक्कड़, भुलक्कड़, कुदक्कड़ 
3. आक/आका/आकू :- तैराक, तैराका, लड़ाकू, भिड़ाकू,
4. आड़ी :- खिलाड़ी 
5. ऐया :- गवैया, नचैया, रिझैया, मुसकैया,
6. तृ/ता :- कर्तृ, हर्तृ, भर्तृ, कर्ता, हर्ता, भर्ता 
7. वाला :- करने वाला, होने वाला, आने वाला, दौड़ने वाला, मरने वाला, सोचने वाला 
8. हार :- राखनहार, मारनहार, खेवनहार, होनहार, तारनहार, देनहार,

(ख) कर्म वाचक कृदंत प्रत्यय :- ये प्रत्यय कर्मवत् प्रयुक्त होने वाली संज्ञाओं की रचना करता है। 
1. औना :- बिछौना, बिलौना, 
2. नी :- ओढ़नी, कथनी,

(ग) करण वाचक कृदंत प्रत्यय :- ये प्रत्यय ऐसी संज्ञाओं की रचना करता है, जिनका प्रयोग वाक्य में साधन के रूप में होता है।
1. अन :- बेलन, बंधन, सेचन, ढक्कन, वहन, भूषण, नयन, 
2. इत्र :- जनित्र, खनित्र, पवित्र,
3. नी :- मथनी, घोटनी, कतरनी, छलनी, जननी, 
4. त्र :- नेत्र, दात्र, पात्र, धात्र, शास्त्र, 

(घ) भाववाचक कृदंत प्रत्यय :- ये प्रत्यय भावगत् प्रयुक्त होने वाली संज्ञाओं की रचना करते हैं।  
1. अक :- उठक, बैठक, कसक, लचक, महक, गटक 
2. अत :- बचत, पठत, लड़त, सुनत, रटत, उड़त, गावत, गिरत, फिरत,
3. अंत :- पठंत, लिखंत, चढंत, मरंत, भिड़ंत, बजंत, हसंत,
4. अन :- आसन, शयन, कथन, लेखन, नर्तन, वादन, धावन, फिसलन, जकड़न, मचलन, कतरन, खुरचन,
5. अना :- भर्त्सना, पढ़ना, अर्चना, धारणा, स्थापना, वंदना, हारना, साधना, भोगना, रोकना, सिलना,
6. अनीय :- पठनीय, वंदनीय, भ्रमणीय, भाषणीय, सराहनीय, सहनीय, कमनीय, रमणीय, स्मरणीय,
7. आन :- उफान, थकान, उठान, चढ़ान, लगान, मुस्कान, भुगतान, सड़ान,
8. आना :- पढ़ाना, चिड़ाना, उठाना, सिखाना, बताना, सुनाना, कटाना, बढ़ाना,
9. आई :- कटाई, सिलाई, चढ़ाई, उतराई, बताई, गिनाई, पिसाई, छपाई, कढ़ाई,
10. आऊ :- बिकाऊ, टिकाऊ, खुजाऊ, सिखाऊ, भड़काऊ, चलाऊ, कमाऊ, उगाऊ,
11. आव :- कटाव, बहाव, घुमाव, ठहराव, पहनाव, दोहराव, कसाव, लगाव,
12. आवा :- चढ़ावा, उतरावा, दिखावा, छलावा, भुलावा, पछतावा, 
13. आवट :- दिखावट, बसावट, कसावट, बुनावट, जमावट, गिरावट, रुकावट, सजावट,
14. आवटी :- सिखावटी, बसावटी, बनावटी, दिखावटी, घुमावटी, मिलावटी,
15. आहट :- घबराहट, बौखलाहट, मुस्कुराहट, कड़कड़ाहट, बड़बड़ाहट, लड़खड़ाहट, झिलमिलाहट,
16. इत :- पठित, लिखित, जपित, भ्रमित, कथित, ग्रसित, त्रसित, वांछित, पोषित, क्रोधित, मूर्च्छित,
17. ओरा :- चटोरा,
18. ओड़ :- हसोड़,
19. औड़ा :- भगौड़ा,
20. औती :- कटौती, मनौती, फिरौती, चुकौती, बिछौती, चुनौती, 
21. तव्य :- पठितव्य, गंतव्य, मंतव्य, श्रोतव्य, पातव्य, हर्तव्य, कर्तव्य, वक्तव्य, 
22. य :- कार्य, जय, पेय, प्रेय, क्रुध्य, आक्रम्य, विजित्य, प्राकार्य, संबोध्य, अदाय, निग्रह्य, उपगम्य, स्तुत्य,

         मित्रों, ये अध्याय काफी विस्तृत है अतः इस अध्याय के शेष भाग को कल पोस्ट करूँगा। पोस्ट आपको कैसी लगी इस के बारे में कमेंट अवश्य करें और नियमित updates पाने के लिए ब्लॉग को follow कर लें।


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Tuesday, May 26, 2020

4. Upsarg

नमस्कार मित्रों,
       आज मैं हिंदी व्याकरण का एक नया अध्याय 'उपसर्ग' शुरू करने जा रहा हूँ। वैसे बहुत लोगों को ये बहुत आसान लगता है किन्तु व्यावहारिक रूप से देखा जाये तो इसके प्रश्न बहुत बार इतने कठिन हो जाते हैं, कि कई बार तो पढ़ने वाले भी मात खा जाते है, कई बार भिन्न उपसगों में भी समानता का आभास हो जाताहै, जैसे जैसे सम् और सम, अन् और अन/अनु, पर और परा इत्यादि। इनके विकल्पों में से प्रश्नानुसार सही विकल्प खोजना काफी मुश्किलें खड़ी कर देता है। तो आइये शुरू  करते हैं आज का टॉपिक - - - 
अध्याय 4. 
उपसर्ग
       जो शब्दांश किसी शब्द से पूर्व जुड़ कर उसके अर्थ को परिवर्तित करते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं। 
उपसर्गों को पाँच भागों में वर्गीकृत किया गया है- 1. संस्कृत के उपसर्ग, 2. हिंदी के उपसर्ग 3. उपसर्गवत् अव्यय, 4. उर्दू के उपसर्ग तथा 5. संख्या उपसर्ग। 
1. संस्कृत के उपसर्ग
       संस्कृत व्याकरण में 22 उपसर्ग बताए  गए हैं, इनमें से अपि उपसर्ग को छोड़ कर हिंदी व्याकरण में 21 उपसर्ग स्वीकार किये गए हैं -
1. प्र :- प्रकार, प्रजाति, प्रकोप, प्रभाव, प्रताप, प्रसाद, प्रणति, प्राचार्य, प्राध्यापक, प्रोन्नत, प्रच्छाया, प्रोज्ज्वल 
2. परा :- पराकाष्ठा, पराजित, पराभव, पराक्रम, पराभूत,
3. अप :- अपवाह, अपवाद, अपशब्द, अपयश, अपकर्म, अपगति, अपनयन, अपनयन, अपक्रमण, अपेही, 
4. सम् :- सम्मान, सम्मुख, सम्मिश्रण, सम्मोहन, समेकित, समोजस्वी, समाचार, सम्मति, समुन्नत। 
5. अनु :- अनुचर, अनुगामी, अनुमान, अनुशासन, अनुवाद, अनुसार, अनुनाद, अनुभव, अनुकृति, अनुपूरक 
6. अव :- अवहेलना, अवनति, अवधारणा, अवमानना, अवसर, अवरोध, अवक्षरण, अवदान, अवगुण, अवज्ञा 
7. निस् :- निस्संतान, निस्संदेह, निश्शुल्क, निश्छल, निष्ठुर, निस्तेज, निस्तारण, निस्सह, निष्पाप, निष्फल 
8. निर् :- निरंतर, निरादर, निरिच्छ, निरुत्तर, निर्धन, निर्गुण, निर्देश, निर्निमेष, निर्बल, निर्धारण, निर्मुक्त,
9. दुस् :- दुस्साहस, दुस्सह, दुस्तर, दुष्कर्म, दुष्फल, दुष्प्रचार, दुष्परिणाम, दुष्प्रभाव, दुस्संताप, दुस्तर, दुष्प्राप्य,
10. दुर् :- दुर्गुण, दुर्नीति, दुराशा, दुर्बल, दुर्गति, दुर्दशा, दुर्बुद्धि, ,दुर्जन, दुर्भिक्ष, दुरुत्साह, दुर्भाग्य, दुर्बोध,
11. वि :- विदेश, विमाता, वियुत्पत्ति, व्यय, व्याकरण, व्यूह, विनियोजन, विजय, विपन्न, विधान, विज्ञान, 
12. आ :- आदान, आपात, आदर्श, आकंठ, आकंठ, आजानु, आदेश, आवर्तन, आकूल, आबद्ध, आयोजन, 
13. नि :- नियोग,  निनाद, निवेदन, निगम, निमेष, नियम, निसेव्य, निषाद, निषिद्ध, निषेध, निमेष, निकास,
14. अधि :- अधिनायक, अधिभार, अधिकृत, अध्यादेश, अधिशेष, अध्युक्ति, अधिकारी, अधिगम, अधिक,
15. अपि :- (इसे हिंदी व्याकरण में उपसर्ग नहीं माना गया है।)
16. अति :- अतिक्रमण, अतिभार, अतिशीत, अत्याचार, अत्युक्ति, अत्याशा, अतिशय, अत्युग्र, अतीव,
17. सु :- सुपुत्र, सुकर्म, सुशासन, सुनीति, सुकुमार, सुगम, सुपरिचित, स्वागत, सुयोग्य, सुदेश, सुबोध, सुयश,
18. उत् :- उत्कृष्ट, उत्पन्न, उत्तर, उद्गम, उद्बोधन, उद्योग, उन्नति, उन्मेष, उन्मुख, उल्लास, उल्लेख, उच्छवास
19. अभि :- अभिकरण, अभिसार, अभिनति, अभिज्ञ, अभिशमन, अभ्युदय, अभ्यागत, अभ्युत्थान, अभिनय 
20. प्रति :- प्रतिकृति, प्रतिलिपि, प्रतिदान, प्रतिपक्ष, प्रतिदिन, प्रत्येक, प्रत्यर्पण, प्रत्युक्ति, प्रतीक, प्रतीति
21. परि :- परिक्रमा, परिभ्रमण, परिमाण, परिणाम, परिणय, पर्याप्त, पर्यंक, पर्यावरण, परिधान, परिपूर्ण, परीक्षा 
22. उप :- उपयोग, उपकरण, उपशमन, उपादान, उपकृत, उपनाम, उपागम, उपनयन, उपमान, उपाध्यक्ष,

2. हिंदी के उपसर्ग 
1. अ :- अकूत, अथक, अकथ, अटल, अटूट, अमिट, अमित, अपत, अशेष, अमोल,
2. अन् :- अनंत, अनादर, अनिच्छा, अनीप्सित, अनुचित, अनुर्वर, अनृत, अनेक, अनैच्छिक, अनोजस्वी,
3. अन :- अनदेखा, अनसुना, अनचखा, अनभिज्ञ, अनजान, अनमेल, अनमोल, अनब्याहा, 
4. उन/उन् :- उन्नीस, उनतीस, उन्तालीस, उनचास, उनसठ, उनहतर, उनासी, उन्नब्बे,
5. औ :- औघड़, औदान, औनत, औढर, औचक, औसत, 
6. क :- कपूत,
7. कु :- कुकर्म, कुकीर्ति, कुयश, कुख्यात, कुयोग, कुजात, कुशासन, कुबुद्धि, कुनीति, कुचेष्टा, कुचक्र, 
8. स :- सफल, सकाम, सपूत, सपरिवार, ससम्मान, सतेज, सघोष, सखेद, सदंभ, 
9. न  :- नपुंसक, नेच्छुक, नोचित, नगण्य,
10. नि :- निकम्मा, निठल्ला, निमुछिया, निधड़क, निडर,

3. उपसर्गवत् अव्यय 
1. अंत :- अंतकाल, अन्तसमय, अंततः, अंतवेला 
2. अन्तः :- अंतःकरण, अंतःपुर, अंतःपतित, अंतःकृत, 
3. अध :- अधमरा, अधकचरा, अधकूटा, अधभरा, 
4. अधः :- अधोगामी, अधोमुखी, अधःपतित, अधस्तात, अधस्तल, 
5. अलम् :- अलंकार, अलंकृत, अलंकरण,
6. आविस्  :- आविष्कार, आविष्कृत, 
7. आविर् :- आविर्भाव, आविर्भूत, 
8. चिर :- चिरकाल, चिरपरिचित, चिरायु,
9. चिरम् :- चिरन्तर, चिरंतन 
10. तत् :- तत्काल, तत्पर, तत्सम, तद्दर्शन, तद्बंधन, तद्वचन, तन्मय, तन्नीति, तल्लीन, तच्चरण, तच्छल 
11. तिरो :- तिरोहित, तिरोगामी, तिरोभूत 
12. तिरस् :- तिरस्कार, तिरस्कृत, तिरस्करण,
13. नाना :- नानाविध, नानाभांति, 
14. पर :- परहित, परप्रेम, परजाया, परोपकार, पराधीन, पराश्रित, परालम्बी, 
15. पुरा :- पुरातत्त्व, पुरापाषाण, पुरावशेष, पुरातन, 
16. पुरो :- पुरोहित, पुरोगामी, पुरोवाक्, 
17. परम :- परमवंदनीय, परमादरणीय, परमपूज्य, परमात्मा, परमेश्वर, परमोजस्वी 
18. परिस् :- परिष्कार, परिष्कृत, परिष्करण,
19. पुनः/पुनर्/पुनस् :- पुनःपुनः, पुनःपूरित, पुनःप्राप्ति, पुनर्जन्म, पुनर्विवाह, पुनर्मिलन, पुनश्चरण, पुनश्चर्चा,
20. परिस् :- परिष्कार, परिष्कृति, परिष्कार्य,
21. पुरस् :- पुरस्कार, पुरस्कृत, 
22. पूर्व :- पूर्वजन्म, पूर्वज, पूर्वकथित, 
23. प्राक् :- प्राक्कथन, प्राक्चरण, प्राक्पतित, प्राग्वारदान, प्राग्वेत्ता,
24. प्रादुर् :- प्रादुर्भाव, प्रादुर्भूत,
25. बहिस् :- बहिष्कार, बहिश्चरण, बहिष्कृत, बहिश्शोधन, 
26. बहिर् :- बहिर्जगति, बहिर्गमन, बहिर्भ्रमण, बहिर्भाग, बहिरंग,
27. बहिस् :- बहिष्कार, बहिष्कृत, बहिष्करण,
28. बहु :- बहुगुण, बहुवचन, बहुभाषा, बहुदान, बहुमत, बहुरूप,
29. बिन :- बिनबोले, बिनसुने, बिनकहे, बिनजाने, बिनचाहा,
30. महा :- महादेव, महावीर, महाकाय, महावत, महादान, महकार, महेच्छा, महेश्वर, माहोर्जा, महोष्मा,
31. यथा :- यथाशक्ति, यथासामर्थ्य, यथायोग्य, यथाबुद्धि, यथाज्ञा, यथोचित, 
32. यावत् :- यावतसमय, यावज्जीवन, यावद्धर्म, यावल्लाभ,
33. लघु :- लघुजीवन, लघुशंका, लघुरूप, 
34. वृहत् :- वृहत्तर, वृहज्जीवन, वृहज्जगति, वृहन्नला, बृहन्मना, 
35. सम :- समरूप, समतल, समलम्ब, समजात, समकक्ष, 
36. स्व :- स्वकर्म, स्वरूप, स्वाधीन, स्वरस, 
37. स्वयं :- स्वयंपाकी, स्वयंभोगी, स्वयंसेवक, स्वयंवर, 
38. सत् :- सत्कर्म, सत्परिणाम, सत्पथ, सत्कार, सद्गति, सद्भाव, सद्योग, सद्विचार, सदाचार, सदिच्छा, सदुपयोग,
39. सह :- सहयोग, सहयात्री, सहगामिनी, सहधर्मिणी, सहोदर,

4. उर्दू के उपसर्ग 
1. अल :- अलमस्त, अलग़रज़, अलबेला, अलहदा, 
2. कम :- कमसिन, कमज़ोर, कमअक्ल, 
3. ख़ुश :- खुशनुमा, खुशहाल, खुशकिस्मत, खुशबू, खुशगवार, 
4. गैर :- गैरहाज़िर, गैरजवाबी, गैरवाजिब, गैरजमानती, 
5. दर :- दरकिनार, दरअसल, दरमियान, 
6. ना :- नापाक, नापसंद, नाराज, नाफरमान, नाकाफी,
7. बर :- बरबस, बर्बाद, बरखुरदार, बरहाल, बर्दास्त,
8. बे :- बेहद, बेहया, बेदर्द, बेबाक, बेहिसाब, बेउम्मीद,
9. बद :- बदनसीब, बदगुमान, बदहवास, बदबू,
10. हर :- हरहाल, हरपल, हरदिन, हरहाल,
11. ब :- बशर्ते, बदौलत, बकौल,
12. हम :- हमशक्ल, हमनवा, हमदम, हमदर्द, हमसाया, हमसफर,
13. ला :- लापता, लापरवाह, लानत, लावारिस, लाचार,
14. सर :- सरफ़रोश, सरगोशी, सरताज, सरहद, सरपरस्त, 
15. ऐन :- ऐनवक्त, ऐनइनायत, ऐनमौका 
16. बिला :- बिलापता, बिलहिसाब, बिलावजह,
17. बा :- बाकायदा, बामुलाहजा, बाअदब, बाख़बर,
18. फी :- फिआदमी, फीरोज,
19. ख़ुद :- खुद्दार, खुदकिस्मत, खुदगर्ज,
20. खूब :- खूबसूरत,

5. संख्या उपसर्ग
1. इक :- इकहरा, इकतरफा, इकतारा, 
2. एक :- एकवचन, एकतरफ, एकबार, 
3. द्वि :- द्विरद, द्विवचन, द्विवेदी, द्विप्रहर, द्विज,
4. दु :- दुपहिया, दुमुखी, दुपहर, दुशाला, 
5. दो :- दोपहर, दोहड़, दोराहा, 
6. ति :- तिपहिया, तिरंगा, तिकोना, तिराहा,
7. त्रि :- त्रिरत्न, त्रिकोण, त्रिनेत्र, त्रिदेव, त्रिकाल, त्रिमुखी, 
8. चौ :- चौबारा, चौमुखा, चौपहिया, चौतरफा, चौहद्दा, चौगुना,
9. चतुस् :- चतुष्कोण, चतुश्चरण, चतुष्षष्ठी, चतुश्चरण,
10. चतुर् :- चतुर्भुज, चतुर्गुण, चतुर्युग, चतुर्मुखी, चतुरानन, चतुर्भाग,
11. पञ्च :- पंचमुखी, पंचपात्र, पंचरत्न, पंचतंत्र, पंजाब, पंचवटी 
12. पच :- पचरंगा,
13. छ :- छमासा, 
14. षट् :- षट्पद, षट्कोण, षड्यन्त्र, षाड्राग, षडानन, षण्मुख, 
15. सप्त :- सप्तपदी, सप्तसिंधु, सप्तसागर, सप्तार्णव, सप्ताह, सप्तांग, सप्तवर्ण,
16. सत :- सतरंग, सतमासा,
17. अष्ट :- अष्टगंध, अष्टभुजी, अष्टचक्र, अष्टधातु, अष्टांग,
18. अठ :- अठमासा, अठन्नी,
19. नव :- नवरत्न, नवरंग, नवनिधि, नवरात्र, नवाह्न, नवनिधि, 
20. दश :- दशानन, दशकंधर, दशाब्दी, दशक,
21. शत् :- शताब्दी, शतक, शतायु, 
22. सहस्त्र :- सहस्त्राब्दी, सहस्त्राक्ष, सहस्त्रबाहु,
          साथियों, आज इस एक ही पोस्ट में उपसर्ग संबंधी सभी आवश्यक तथ्य समावेशित कर लिए गए हैं, जो पूर्णतः परीक्षोपयोगी है। आप इसे पढ़ें और लाभ उठाएँ। किसी प्रकार की अध्याय या विषय से जुड़ी कठिनाई हेतु कमेंट अवश्य करें। अगले पोस्ट में 'प्रत्यय' के बारे में चर्चा करेंगे। आगामी पोस्ट की सर्वप्रथम जानकती प्राप्त करने के लिए blog को Follow अवश्य करें।
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द्वंद्व समास और बहुव्रीहि समास https://deepaksikhwal.blogspot.com/2020/05/dvandva-samas.html

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